Saturday, February 21, 2009

केवल दो तरह के ही लोग हैं

मुझे हमेशा से लगते रहा है कि दुनिया में केवल दो प्रकार के लोग हैं आस्तिक और नास्तिक। इनका विभाजन हम धर्म के सतही अर्थ में नहीं कर सकते अपितु इसके लिए हमें आस्था संबंधी उपकरण उपयोग करने होंगे। अगर ईश्वर या दिव्य शक्ति को हम अनुभव करते हैं तो हम आस्तिकता के किसी खास आधार को ही स्वीकार करने से हिचकेंगे। जैसाकि उपनिषदों में कहा गया है कि वह आंतरिक प्रकाश जो हमें सकारात्मक दिशा की ओर प्रेरित करता है। यह पहले प्रकार के लोग हैं दूसरे प्रकार के वह लोग जो केवल किसी खास प्रकार के धर्म के अस्तित्व में भरोसा करते हैं ऐसे लोग दिखावे के तौर पर अपने धर्म के प्रति बेहद कट्टरवादी दिख सकते हैं अपने अपने धर्मों के झंडाबरदार इसी तरह के दिखते हैं। लेकिन इनकी विडंबना यह है कि सच्चे धार्मिक बोध की अनुपस्थिति में यह एक अलग प्रकार की आग में जलते रहते हैं जिनकी रक्षा कोई भी धार्मिक ग्रंथ अथवा ईश्वर नहीं कर सकता। निर्मल वर्मा के शब्दों में कहें तो एक रुढ़िवादी की विडंबना यह है कि वह अपने धार्मक ग्रंथों से तो परिचित है लेकिन उसके लिए वह रूढ़ ही हैं क्योंकि वह प्रतीकों के असल अर्थ भूल चुका है। और आस्तिक वह जो अनुभवहीन स्मृति और स्मृतिहीन अनुभव में जीता है।

Thursday, February 19, 2009

साधू या शैतान.................

साधू या शैतान........................

साधुओं से मेरे अनुभव बहुत ही बुरे रहे हैं यहां तक कि अब मैं उनसे कभी नहीं मिलना चाहता, यहां एक बड़ा धार्मिक मेला लगा हुआ है। दादी के आग्रह करने पर मैं भी एक बाबा के आश्रम में चला गया। यहां पर मुझे बेहद अप्रिय अनुभव हुए। बाबा मुझसे आर्थिक स्थिति के बारे में पड़ताल करने लगा(लगे यूज नहीं कर रहा हूं क्योंकि वह साधू के भेष में शैतान था। घर की महिलाओं के बारे में उसकी दिलचस्पी से मैं बुरी तरह से व्यथित हो गया और गुस्से में बाहर आ गया। परिवार वाले नाराज हो गये कि इतने पहुंचे हुए बाबाजी का मैंने अपमान कर दिया। लेकिन धर्म के आड़ में अधर्म करने वाले इन ढोंगियों से अब कभी संवाद नहीं करने का फैसला मैंने किया है। थोड़ी दूर पर देखा, एक कोढ़ी जिसका अंग-अंग कोढ़ से गल गया था खून से लथपथ भीख मांग रहा था, मैंने जेब टटोली, केवल 10 के नोट थे तो मैं आगे बढ़ गया। तब मन में विचार आया कि कोढ़ग्रस्त भिखारियों के लिए हमारे पास केवल 1 या 2 रुपए होते हैं लेकिन ढोंग को बढ़ावा देने वाले इन साधुओं को गाली सुनने के बावजूद हम हजारों रुपए का दान कर देते हैं।