रोटी-पानी पर दाँव लगाने वाला फंड
वर्षों पहले सर क्लार्क ने कहा था कि ए पालिटिशिय़न थिंक फार नेक्सट इलेक्शन बट अ स्टेट्समेन थिंक्स फार नेक्सट जनरेशन अर्थात एक राजनेता केवल अगले चुनावों के बारे में सोचता है लेकिन एक राजमर्मज्ञ अगली पीढ़ी के बारे में सोचता है। बिरला सनलाइफ कमोडिटी इक्विटी फंड की लाँचिंग के अवसर पर भारत आये जिम रोजर्स की इंवेस्टिंग स्टाईल के बारे में यही बात दूसरे ढंग से कही जा सकती है। वह केवल आने वाले दो या तीन वर्षों के संबंध में नहीं सोचते, वह आने-वाले 20-30 वर्षों का खाका दिमाग में रख कर चलते हैं तभी चीन की वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने की घोषणा वह 80 के दशक में कर सके। बिरला सनलाइफ कमोडिटी फंड की लाँचिंग के अवसर पर उन्होंने वाटर स्टाक्स के महत्व की चर्चा की। रोजर्स के कथन में छुपी हुई संभावनाओं को इस पीढ़ी के वह सारे लोग समझ सकते हैं जिन्होंने अपनी आँखों के सामने पानी को एक कमोडिटी के रूप में बिकता पाया है जिसकी एक दशक पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। दरअसल बिरला सनलाइफ कमोडिटी इक्विटी फंड में वह सारी बातें सारगर्भित रूप में छुपी हुई हैं जिनकी वकालत रोजर्स बरसों से करते आये हैं शायद इसी के चलते फंड की लाँचिंग के लिए कंपनी को रोजर्स सबसे उपयुक्त जान पड़े।
क्या है कमोडिटी इक्विटी का विचारः
कमोडिटी इक्विटी फंड कमोडिटी में निवेश का अधिक परिष्कृत रूप होता है। उदाहरण के लिए अगर सोने की बात की जाये तो कमोडिटी के माध्यम से इसमें निवेश का अर्थ होगा केवल धातु के रूप में सोने में निवेश, स्वाभाविक रूप से निवेशक को जो लाभ होगा वह केवल इस धातु की कीमतों के बढ़ने से ही होगा, जबकि कमोडिटी इक्विटी में होने वाला निवेश सोने की माइनिंग से लेकर इसके परिष्करण और विपणन तक के विभिन्न क्रियाकलापों में लगी कंपनियों में हो सकता है, इससे न सिर्फ निवेशक को डाइवर्सिफिकेशन से जुड़े लाभ मिलेंगे अपितु वेल्यू एडीशन के चलते प्राफिट मार्जिन भी बढ़ेगा। फिलहाल दुनिया भर में मुद्रास्फीति का संकट है और अनेक देशों में यह दहाई के आँकड़े को पार कर गया है। मुद्रास्फीति का संकट बहुत कुछ माँग और आपूर्ति के असंतुलन के आधार पर खड़ा हुआ है और इसके निकट भविष्य में छँटने की संभावनायें कम ही हैं, अतः आने वाले वर्षों में कमोडिटी के निवेशक लाभ की स्थिति में रहेंगे। रोजर्स मानते हैं कि इक्विटी मार्केट के शार्ट टर्म बुल पीरिएड के विपरीत कमोडिटी का बुल पीरिएड 15 से 20 सालों तक काम करता है और यहाँ पूंजी लगाने के इच्छुक निवेशकों को इक्विटी निवेशक की तुलना में अधिक धैर्यवान होना चाहिए।
डाइवर्सिफिकेशन का पूरा लाभः
कमोडिटी इक्विटी फंड निवेशकों को कई तरह से डाइवर्सिफिकेशन(वैविध्य) का लाभ प्रदान करता है, पहला तो यह किसी खास सेक्टर से संबंधित नहीं है दूसरे फंड मैनेजर इस बात के लिए स्वतंत्र है दूसरे फंड मैनेजर इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह फंडामेंटल स्ट्रेंथ के आधार पर स्टाक का चयन करे चाहे वह लार्जकैप हो, मिडकैप हो अथवा स्मालकैप। तीसरा फंड मैनेजर ग्लोबल आधार पर(भारतीय कंपनियाँ भी यही कर रही हैं टाटा ने कोरस का अधिग्रहण किया और बिरला ने नोवैलिस का) सबसे बेहतर स्टाक का चुनाव करेंगे। इनके चुनाव के लिए वह कान्ट्रा रणनीति अपनायेंगे अर्थात उस स्टाक में दाँव लगायेंगे जो बेहतर मूल्याँकन पर मिल रहे हों भले ही बाजार इन्हें उस वक्त विशेष तवज्जो न दे रहा हो। फंड ने अपना दायरा बढ़ाने के लिए निवेशकों के पास तीन विकल्प रखे हैं पहला एग्री कमोडिटी से संबंधित, दूसरा प्रीशियस मेटल(कीमती धातु) से संबंधित तथा तीसरा मल्टी कमोडिटी प्लान जिसमें कमोडिटी का वृहत क्षेत्र शामिल किया गया है।
रोजमर्रा की वस्तुओं पर दाँवः
बिरला सनलाइफ कमोडिटी इक्विटी फंड जीवन की मूलभूत वस्तुओं रोटी-पानी पर दाँव लगाता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक पिछली शताब्दी में विश्व की आबादी में तीन गुना वृद्धि हुई है और इसके चलते शुद्ध जल की माँग में 6 गुना बढ़ोत्तरी हुई है। इस शताब्दी में जलस्रोत तेजी से घटे हैं और अनुमान के मुताबिक विश्व भर में शुद्ध जल के केवल 1 प्रतिशत स्रोत ही बचे हैं। पानी हर जगह दूषित हो रहा है इसके चलते शुद्ध जल उपलब्ध कराने वाली कंपनियों का बाजार बढ़ने की उम्मीद है। विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक 2000 से 2015 के मध्य भारत में पानी का कारोबार 1325 फीसदी बढ़ जायेगा। फिलहाल फंड मैनेजर स्वेज तथा जीई जैसी कंपनियों के स्टाक खरीदेंगे जो समुद्री जल को पीने योग्य पानी में बदल रहे हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इस दशक में दुनियाभर ने चीन और भारत की प्रगति देखी है जहाँ मध्यवर्ग का आकार और इसकी संपन्नता में तेजी से वृद्धि हुई है जिसके चलते इस वर्ग में कमोडिटी के उपभोग में वृद्धि हुई है। इस बढ़ी हुई माँग के अनुरूप कमोडिटी की आपूर्ति में अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं हुई है, यह असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है और यही कमोडिटी इक्विटी में निवेश का आधार बन सकता है।
ग्लोबल मेल्टडाऊन और सोनाः
सोना हमेशा से मुद्रास्फीति की स्थिति में जोखिम सुरक्षा के लिए अपनाया जाता है। विशेष रूप से इस धातु की भूमिका बाजार में तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब स्टाक मार्केट अथवा बैंकिंग तंत्र संकट के दौर से गुजर रहे हों। उदाहरण के लिए लीमैन के दिवालियापन और मेरिल लिंच के बिकने की खबर आते ही सोना कुछ बढ़ा लेकिन जब मार्गन स्टैनले के संबंध में इसी तरह की खबरे आईं तो सोना एक दिन में ही चढ़कर 12500 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुँच गया। वैसे भी माँग और पूर्ति का असंतुलन सोने के पक्ष में झुकता है जिसके चलते निवेश के लिए यह सबसे आकर्षक धातु हो सकता है। भारत में सोने का रूझान प्रथमतः तो भावनात्मक ही है उदाहरण के लिए बीती हुई अक्षय तृतीया को केवल दक्षिण भारत में 70000 किलोग्राम सोना बिका जो पूरे विश्व भर में(भारत को छोड़कर) 78 दिनों में बिके हुए सोने के बराबर है अतः परंपरा और अर्थशास्त्र दोनों इसके सहयोगी हैं।
बिरला सनलाइफ कमोडिटी इक्विटी प्लानः
ओपन एन्ड ग्रोथ स्कीम
एनएफओ ओपन-15 सितंबर
एनएफओ क्लोज्ड-14 अक्टूबर
पूंजी आवंटन- इक्विटी 80 से 100 प्रतिशत
इंडियन सिक्युरिटी 0 से 35 फीसदी
ग्लोबल सिक्युरिटी 65 से 100 फीसदी
ओवरसीज इक्विटी म्यूच्युअल फंड 0 से 20 फीसदी
Saturday, September 27, 2008
चाइना फंड
अब ओलंपिक के सरताज पर दाँव
फाइनेंस की दुनिया में चर्चित एक प्रमुख रेटिंग एजेंसी ने किसी देश की अर्थव्यवस्था के आधार पर ओलंपिक में मिलने वाले संभावित पदकों की सूची निकाली। भारत की अर्थव्यवस्था में हुई तेज वृद्धि के चलते इसने भारतीय खिलाड़ियों को 6 पदक मिलने के अनुमान जताये थे। अगर भारतीय खिलाड़ियों के वर्तमान प्रदर्शन पर नजर डालें तो अभिनव बिन्द्रा को स्वर्ण पदक मिल चुका है, सुशील कुमार को काँस्य और विजेन्द्र का पदक तय हो चुका है। इसके अलावा भारत के दो मुक्केबाजों ने क्वाटर फाइनल तक जगह बनाई थी और पदक से मामूली अंतर से चूक गये। नतीजों के अनुमान के इतने निकट आने से यह स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था और खेलों के बीच अंतर्निहित संबंधों को खोजने की कोशिश बहुत हद तक सफल हुई है। अगर इस आधार पर देखा जाये तो चीन ने अपने प्रदर्शन में(अब तक 45 स्वर्ण पदक) अमेरिका(अब तक 22 स्वर्ण पदक) को पीछे छोड़ दिया है और सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में उभरा है। अगर इस अंर्तसंबंध को कुछ समय के लिए खारिज भी कर दिया जाये तो भी 9.5 की दर से बढ़ रही चीनी अर्थव्यवस्था में भारतीय निवेशकों के लिए भी काफी संभावनायें हो सकती हैं। जेपी मार्गन ने अमेरिकन निवेशकों को चीन के बाजारों का लाभ दिलाने वर्ष 2001 में ग्रेटर चाइना इक्विटी फंड लाँच किया था और अब भारतीय निवेशकों को चीनी बाजारों का लाभ दिलाने कंपनी ने ग्रेटर चाइना फंड का प्रस्ताव सेबी के समक्ष रखा है।
क्या है खासः
ग्रेटर चाइना फंड में निवेशक की 80 फीसदी पूँजी चीन, ताइवान और हाँगकाँग में लगाई जायेगी। हाँगकाँग और ताइवान लंबे अरसे से पूँजीवादी देशों के संपर्क में रहने की वजह से पहले ही इकानामिक हब के रूप में स्थापित हो चुके हैं। चीन में विलय के बाद भी हाँगकाँग की अर्थव्यवस्था इसी तरह से फल-फूल रही है। अमेरिकन निवेशकों के लिए जो फंड निकाला गया था, उसने लाँचिंग के बाद 17 प्रतिशत तक रिटर्न दिये हैं जबकि बेंचमार्क गोल्डन ड्रैगन ने 10 फीसदी तक रिटर्न दिये हैं। कच्चे तेल की कीमत फिलहाल 115 डालर प्रति बैरल पर है और चीन से लेकर आस्ट्रेलिया तक सारे किसानों ने फसल की अच्छी कीमत प्राप्त करने बुआई बढ़ा दी है इसके चलते खाद्यान्नों की कीमत में 30 प्रतिशत तक गिरावट आने की संभावना है। इससे मुद्रास्फीति की तेजी से बढ़ती दर थमने की संभावनायें बनी हैं। अमेरिकन अर्थव्यवस्था सबप्राइम संकट से धीरे-धीरे उबरती नजर आ रही है और लंबे अरसे बाद वैश्विक सूचकाँक ग्रीन सिग्नल दिखा रहे हैं। शंघाई का मार्केट जुलाई के अपने मूल्याँकन से 62 फीसदी निचले स्तर पर है और ऐसे बाजार में फंड मैनेजर द्वारा सही स्टाक के चुनाव से निवेशक को लाभ मिल सकता है।
क्या है आशंकाः
ओलंपिक के चलते चीन में स्टील और कंस्ट्रक्शन के अतिरिक्त कैपिटल गुड्स कंपनियों की गतिविधि में काफी तेजी आई थी। अब जब ओलंपिक का शोर खत्म होने वाला है तब इन कंपनियों को अपने आर्डर बुक भरने के लिए खासी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है। क्रूड आइल में वोलेटिलिटी(उथलपुथल) इतनी अधिक है कि इसको देखते हुए किसी तरह से भी बाजार की टाइमिंग कर पाना काफी कठिन है। सरकार द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अब तक किये गये प्रयासों का खास नतीजा नहीं निकल पाया है और सरकार द्वारा अनुमानित दर(4.8 फीसदी) की तुलना में यह आँकड़ा 7.5 प्रतिशत तक पहुँच गया है। रेटिंग एजेंसियों ने अनुमान लगाये हैं कि अगले वित्त वर्ष में जीडीपी की विकास दर इस वर्ष से 1 प्रतिशत घटकर 7.5 प्रतिशत रह जायेगी। वैसे इस स्तर पर भी चीनी ड्रैगन में निवेश करना अन्य विकल्पों की तुलना में बेहतर हो सकता है।
फाइनेंस की दुनिया में चर्चित एक प्रमुख रेटिंग एजेंसी ने किसी देश की अर्थव्यवस्था के आधार पर ओलंपिक में मिलने वाले संभावित पदकों की सूची निकाली। भारत की अर्थव्यवस्था में हुई तेज वृद्धि के चलते इसने भारतीय खिलाड़ियों को 6 पदक मिलने के अनुमान जताये थे। अगर भारतीय खिलाड़ियों के वर्तमान प्रदर्शन पर नजर डालें तो अभिनव बिन्द्रा को स्वर्ण पदक मिल चुका है, सुशील कुमार को काँस्य और विजेन्द्र का पदक तय हो चुका है। इसके अलावा भारत के दो मुक्केबाजों ने क्वाटर फाइनल तक जगह बनाई थी और पदक से मामूली अंतर से चूक गये। नतीजों के अनुमान के इतने निकट आने से यह स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था और खेलों के बीच अंतर्निहित संबंधों को खोजने की कोशिश बहुत हद तक सफल हुई है। अगर इस आधार पर देखा जाये तो चीन ने अपने प्रदर्शन में(अब तक 45 स्वर्ण पदक) अमेरिका(अब तक 22 स्वर्ण पदक) को पीछे छोड़ दिया है और सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में उभरा है। अगर इस अंर्तसंबंध को कुछ समय के लिए खारिज भी कर दिया जाये तो भी 9.5 की दर से बढ़ रही चीनी अर्थव्यवस्था में भारतीय निवेशकों के लिए भी काफी संभावनायें हो सकती हैं। जेपी मार्गन ने अमेरिकन निवेशकों को चीन के बाजारों का लाभ दिलाने वर्ष 2001 में ग्रेटर चाइना इक्विटी फंड लाँच किया था और अब भारतीय निवेशकों को चीनी बाजारों का लाभ दिलाने कंपनी ने ग्रेटर चाइना फंड का प्रस्ताव सेबी के समक्ष रखा है।
क्या है खासः
ग्रेटर चाइना फंड में निवेशक की 80 फीसदी पूँजी चीन, ताइवान और हाँगकाँग में लगाई जायेगी। हाँगकाँग और ताइवान लंबे अरसे से पूँजीवादी देशों के संपर्क में रहने की वजह से पहले ही इकानामिक हब के रूप में स्थापित हो चुके हैं। चीन में विलय के बाद भी हाँगकाँग की अर्थव्यवस्था इसी तरह से फल-फूल रही है। अमेरिकन निवेशकों के लिए जो फंड निकाला गया था, उसने लाँचिंग के बाद 17 प्रतिशत तक रिटर्न दिये हैं जबकि बेंचमार्क गोल्डन ड्रैगन ने 10 फीसदी तक रिटर्न दिये हैं। कच्चे तेल की कीमत फिलहाल 115 डालर प्रति बैरल पर है और चीन से लेकर आस्ट्रेलिया तक सारे किसानों ने फसल की अच्छी कीमत प्राप्त करने बुआई बढ़ा दी है इसके चलते खाद्यान्नों की कीमत में 30 प्रतिशत तक गिरावट आने की संभावना है। इससे मुद्रास्फीति की तेजी से बढ़ती दर थमने की संभावनायें बनी हैं। अमेरिकन अर्थव्यवस्था सबप्राइम संकट से धीरे-धीरे उबरती नजर आ रही है और लंबे अरसे बाद वैश्विक सूचकाँक ग्रीन सिग्नल दिखा रहे हैं। शंघाई का मार्केट जुलाई के अपने मूल्याँकन से 62 फीसदी निचले स्तर पर है और ऐसे बाजार में फंड मैनेजर द्वारा सही स्टाक के चुनाव से निवेशक को लाभ मिल सकता है।
क्या है आशंकाः
ओलंपिक के चलते चीन में स्टील और कंस्ट्रक्शन के अतिरिक्त कैपिटल गुड्स कंपनियों की गतिविधि में काफी तेजी आई थी। अब जब ओलंपिक का शोर खत्म होने वाला है तब इन कंपनियों को अपने आर्डर बुक भरने के लिए खासी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है। क्रूड आइल में वोलेटिलिटी(उथलपुथल) इतनी अधिक है कि इसको देखते हुए किसी तरह से भी बाजार की टाइमिंग कर पाना काफी कठिन है। सरकार द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अब तक किये गये प्रयासों का खास नतीजा नहीं निकल पाया है और सरकार द्वारा अनुमानित दर(4.8 फीसदी) की तुलना में यह आँकड़ा 7.5 प्रतिशत तक पहुँच गया है। रेटिंग एजेंसियों ने अनुमान लगाये हैं कि अगले वित्त वर्ष में जीडीपी की विकास दर इस वर्ष से 1 प्रतिशत घटकर 7.5 प्रतिशत रह जायेगी। वैसे इस स्तर पर भी चीनी ड्रैगन में निवेश करना अन्य विकल्पों की तुलना में बेहतर हो सकता है।
इंडियन टाइगर की दहाड़ सबसे तेज
इंडियन टाइगर की दहाड़ सबसे तेज
वर्ष 2004 में जब मेरिल लिंच ने इंडियन टाइगर फंड लाँच किया तो कुछ निवेश सलाहकारों ने टिप्पणी की थी कि इसकी दहाड़ भी भारतीय शेरों की तरह धीरे-धीरे शाँत हो जायेगी। अटकलों के विपरीत इंडिया टाइगर की दहाड़ न केवल समय के साथ शक्तिशाली होती गई अपितु मंदी के इस दौर में यह फंड मार्केट से सबसे ज्यादा पूँजी बटोरने वाले फंड्ज में शामिल रहा। इंडिया टाइगर को क्रिसिल ने प्रथम श्रेणी के फंड में शामिल किया है और इसे खरीदने की सलाह दी है। इंडिया टाइगर की स्टाक मार्केट की परफेक्ट टाइमिंग और स्टाक के सही चुनाव का पता इसी आधार पर लगाया जा सकता है कि इसने पिछले 1 महीने में कड़ी मेहनत की है और इसका वार्षिक रिटर्न कुछ सुधर कर 4.2 प्रतिशत(नकारात्मक) हो गया है।
क्या है खासः
इंडिया टाइगर(द इंफ्रास्ट्रक्चर एंड गवर्मेंट रिफार्म्स) द्वितीय चरण के आर्थिक सुधारों का लाभ निवेशकों को देने लाँच किया गया। यह वह दौर था जब एनडीए सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के बड़े प्रोजेक्ट्स की स्वीकृति दे दी थी और इसके अनुरूप देश में पहली बार चीन के एक्सप्रेस वे की तरह की सड़कों का महत्व समझा गया। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया और स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी परियोजनाएं शुरू हुई। पीपीपी(पब्लिक-प्राइवेट-पार्टिसिपेशन) के आधार पर निजी और सार्वजनिक दोनों तरह की कंपनियों को इसका लाभ उठाने अवसर मिले। बीओटी(बिल्ड आपरेट ट्राँसफर) के विचार के चलते सड़कों की गुणवत्ता में भी सुधार आया। यूपीए सरकार ने भी रिफार्म्स को जारी रखा। इन परियोजनाओं के चलते स्टील,सीमेंट और इंजीनियरिंग कंपनियों में बूम आना था जिसका लाभ फंड को हुआ। फंड की थीम का दूसरा पहलू यह था कि पावर सेक्टर और ट्राँसपोर्टेशन में हुई प्रगति का सीधा लाभ टेलीकाम जैसे सर्विस सेक्टर को मिलेगा। अगर वर्ष 2008 की छमाही को छोड़ दिया जाये तो फंड ने सतत रूप से बेहतर रिटर्न दिये हैं। फंड के पोर्टफोलियो पर ध्यान दें तो फंड मैनेजर ने उन कंपनियों को चुना है जो भविष्य में शानदार रिटर्न दे सकते हैं।
किन कंपनियों पर लगाया दाँवः
इंडिया टाइगर फंड ने सबसे अधिक दाँव इंजीनियरिंग कंपनियों पर(16.74 फीसदी) लगाया है जिसके अंतर्गत एल एन्ड टी पर 5.74 प्रतिशत और भेल पर 4.54 फीसदी पूँजी लगाई गई है। इन दोनों कंपनियों के आर्डरबुक पर नजर डालें तो यह अगले पाँच-छह सालों के लिए बुक हैं। परमाणु करार संपन्न होने के पश्चात स्थापित होने वाले रियेक्टरों को मशीनों की आपूर्ति इन्हीं कंपनियों से होगी। 1962 के परमाणु करार में संशोधन होने के पश्चात अमेरिकन कंपनियों से भारतीय कंपनियों के गठजोड़ की संभावनायें बढ़ जायेंगी। भेल की इस संबंध में अमरीका की दिग्गज कंपनियों से चर्चा चल रही है। आईल एंड गैस सेक्टर काफी महत्वपूर्ण है इस पर फंड मैनेजर ने 11.2 फीसदी दाँव लगाया है। रिलायंस पर 4.54 फीसदी और ओएनजीसी पर 2.56 प्रतिशत का दाँव लगाया गया है। रिलायंस के तिमाही आंकड़ों पर ध्यान दें तो रिफाइनरी से हुई आय में अच्छी-खासी वृद्धि हुई है। रिलायंस के पेट्रोल पंप घरेलू कंपनियों को सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के चलते प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे थे, अब इन्हें बंद कर कंपनी निर्यात की ओर ध्यान दे रही है जिसका सीधा प्रभाव तिमाही नतीजों में नजर आ रहा है। 2002 से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य-निर्धारण को प्रशासनिक नियंत्रण से हटाकर बाजार की शक्तियों से स्वयं मूल्याँकित होने की छूट दी गई जिसका लाभ यह फंड उठाता रहा है। फिलहाल जब बी के चतुर्वेदी समिति विंडफाल टैक्स लगाने की सिफारिश कर रही है तब इस सेक्टर को थोड़ा नुकसान पहुँचने की आशंका बनती है और संभव है कि फंड मैनेजर इसके अनुकूल पोर्टफोलियो में थोड़ा बदलाव करे। बैंकिंग एवं फाइनेंस सेक्टर में पोर्टफोलियो का 11.2 फीसदी हिस्सा लगाया गया है और इस सेक्टर की दो दिग्गज कंपनियों एसबीआई एवं आईसीआईसीआई पर क्रमशः 2.56 फीसदी का दाँव लगाया गया है। बैसेल -2 के मानकों के लागू होने तथा अंतरराष्ट्रीय बैंकों के प्रवेश के पश्चात बैंकिंग गतिविधियों में तीव्र विस्तार होगा जिसका सीधा लाभ बैंकिंग सेक्टर को मिलेगा। अगर बैंकिंग सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का मूल्याँकन देखें तो इनमें से अधिकाँश लगभग 30 फीसदी तक गिरे हुए हैं। मेटल और माइनिंग कंपनियों पर पोर्टफोलियो का 8.54 फीसदी लगाया गया है। परमाणु करार संपन्न होने के पश्चात स्टील सेक्टर में भी बूम आने की संभावनायें निवेश सलाहकार जता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही उड़ीसा में पास्को के प्लाँट को इजाजत दी है इसके साथ ही मेटल सेक्टर में कई परियोजनायें शुरू होने का लाभ सीधे माइनिंग कंपनियों को मिलेगा। अगर टेलीकाम पर नजर डालें तो इसकी ग्रोथ स्टोरी अभी अधूरी ही है भारत में टेलीफोन घनत्व अभी तक 20 फीसदी के स्तर तक भी नहीं पहुँचा है। फंड मैनेजर ने टेलीकाम पर 7.66 फीसदी दाँव लगाया है इसके अंतर्गत भारती एयरटेल पर 3.34 फीसदी और आर काम पर 3.05 फीसदी दाँव लगाया है। 3-जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से टेलीकाम कंपनियाँ और तेजी से उभरेंगी। भारत का टेलीकाम उद्योग अब अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की ओर निगाह कर रहा है जिसके चलते आर-काम ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के साथ लगातार चर्चा की, भले ही यह वार्ता कुछ विधिक कारणों से सफल नहीं रही हो, लेकिन इस तरह के अन्य गठजोड़ों के लिए संभावनायें खुली हुई हैं। डाइवर्सिफाइड फंड होने की वजह से फंड मैनेजर के पास नये उभरने वाले अवसरों को भुनाने के लिए अच्छा मौका है।
वर्ष 2004 में जब मेरिल लिंच ने इंडियन टाइगर फंड लाँच किया तो कुछ निवेश सलाहकारों ने टिप्पणी की थी कि इसकी दहाड़ भी भारतीय शेरों की तरह धीरे-धीरे शाँत हो जायेगी। अटकलों के विपरीत इंडिया टाइगर की दहाड़ न केवल समय के साथ शक्तिशाली होती गई अपितु मंदी के इस दौर में यह फंड मार्केट से सबसे ज्यादा पूँजी बटोरने वाले फंड्ज में शामिल रहा। इंडिया टाइगर को क्रिसिल ने प्रथम श्रेणी के फंड में शामिल किया है और इसे खरीदने की सलाह दी है। इंडिया टाइगर की स्टाक मार्केट की परफेक्ट टाइमिंग और स्टाक के सही चुनाव का पता इसी आधार पर लगाया जा सकता है कि इसने पिछले 1 महीने में कड़ी मेहनत की है और इसका वार्षिक रिटर्न कुछ सुधर कर 4.2 प्रतिशत(नकारात्मक) हो गया है।
क्या है खासः
इंडिया टाइगर(द इंफ्रास्ट्रक्चर एंड गवर्मेंट रिफार्म्स) द्वितीय चरण के आर्थिक सुधारों का लाभ निवेशकों को देने लाँच किया गया। यह वह दौर था जब एनडीए सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के बड़े प्रोजेक्ट्स की स्वीकृति दे दी थी और इसके अनुरूप देश में पहली बार चीन के एक्सप्रेस वे की तरह की सड़कों का महत्व समझा गया। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया और स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी परियोजनाएं शुरू हुई। पीपीपी(पब्लिक-प्राइवेट-पार्टिसिपेशन) के आधार पर निजी और सार्वजनिक दोनों तरह की कंपनियों को इसका लाभ उठाने अवसर मिले। बीओटी(बिल्ड आपरेट ट्राँसफर) के विचार के चलते सड़कों की गुणवत्ता में भी सुधार आया। यूपीए सरकार ने भी रिफार्म्स को जारी रखा। इन परियोजनाओं के चलते स्टील,सीमेंट और इंजीनियरिंग कंपनियों में बूम आना था जिसका लाभ फंड को हुआ। फंड की थीम का दूसरा पहलू यह था कि पावर सेक्टर और ट्राँसपोर्टेशन में हुई प्रगति का सीधा लाभ टेलीकाम जैसे सर्विस सेक्टर को मिलेगा। अगर वर्ष 2008 की छमाही को छोड़ दिया जाये तो फंड ने सतत रूप से बेहतर रिटर्न दिये हैं। फंड के पोर्टफोलियो पर ध्यान दें तो फंड मैनेजर ने उन कंपनियों को चुना है जो भविष्य में शानदार रिटर्न दे सकते हैं।
किन कंपनियों पर लगाया दाँवः
इंडिया टाइगर फंड ने सबसे अधिक दाँव इंजीनियरिंग कंपनियों पर(16.74 फीसदी) लगाया है जिसके अंतर्गत एल एन्ड टी पर 5.74 प्रतिशत और भेल पर 4.54 फीसदी पूँजी लगाई गई है। इन दोनों कंपनियों के आर्डरबुक पर नजर डालें तो यह अगले पाँच-छह सालों के लिए बुक हैं। परमाणु करार संपन्न होने के पश्चात स्थापित होने वाले रियेक्टरों को मशीनों की आपूर्ति इन्हीं कंपनियों से होगी। 1962 के परमाणु करार में संशोधन होने के पश्चात अमेरिकन कंपनियों से भारतीय कंपनियों के गठजोड़ की संभावनायें बढ़ जायेंगी। भेल की इस संबंध में अमरीका की दिग्गज कंपनियों से चर्चा चल रही है। आईल एंड गैस सेक्टर काफी महत्वपूर्ण है इस पर फंड मैनेजर ने 11.2 फीसदी दाँव लगाया है। रिलायंस पर 4.54 फीसदी और ओएनजीसी पर 2.56 प्रतिशत का दाँव लगाया गया है। रिलायंस के तिमाही आंकड़ों पर ध्यान दें तो रिफाइनरी से हुई आय में अच्छी-खासी वृद्धि हुई है। रिलायंस के पेट्रोल पंप घरेलू कंपनियों को सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के चलते प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे थे, अब इन्हें बंद कर कंपनी निर्यात की ओर ध्यान दे रही है जिसका सीधा प्रभाव तिमाही नतीजों में नजर आ रहा है। 2002 से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य-निर्धारण को प्रशासनिक नियंत्रण से हटाकर बाजार की शक्तियों से स्वयं मूल्याँकित होने की छूट दी गई जिसका लाभ यह फंड उठाता रहा है। फिलहाल जब बी के चतुर्वेदी समिति विंडफाल टैक्स लगाने की सिफारिश कर रही है तब इस सेक्टर को थोड़ा नुकसान पहुँचने की आशंका बनती है और संभव है कि फंड मैनेजर इसके अनुकूल पोर्टफोलियो में थोड़ा बदलाव करे। बैंकिंग एवं फाइनेंस सेक्टर में पोर्टफोलियो का 11.2 फीसदी हिस्सा लगाया गया है और इस सेक्टर की दो दिग्गज कंपनियों एसबीआई एवं आईसीआईसीआई पर क्रमशः 2.56 फीसदी का दाँव लगाया गया है। बैसेल -2 के मानकों के लागू होने तथा अंतरराष्ट्रीय बैंकों के प्रवेश के पश्चात बैंकिंग गतिविधियों में तीव्र विस्तार होगा जिसका सीधा लाभ बैंकिंग सेक्टर को मिलेगा। अगर बैंकिंग सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का मूल्याँकन देखें तो इनमें से अधिकाँश लगभग 30 फीसदी तक गिरे हुए हैं। मेटल और माइनिंग कंपनियों पर पोर्टफोलियो का 8.54 फीसदी लगाया गया है। परमाणु करार संपन्न होने के पश्चात स्टील सेक्टर में भी बूम आने की संभावनायें निवेश सलाहकार जता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही उड़ीसा में पास्को के प्लाँट को इजाजत दी है इसके साथ ही मेटल सेक्टर में कई परियोजनायें शुरू होने का लाभ सीधे माइनिंग कंपनियों को मिलेगा। अगर टेलीकाम पर नजर डालें तो इसकी ग्रोथ स्टोरी अभी अधूरी ही है भारत में टेलीफोन घनत्व अभी तक 20 फीसदी के स्तर तक भी नहीं पहुँचा है। फंड मैनेजर ने टेलीकाम पर 7.66 फीसदी दाँव लगाया है इसके अंतर्गत भारती एयरटेल पर 3.34 फीसदी और आर काम पर 3.05 फीसदी दाँव लगाया है। 3-जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से टेलीकाम कंपनियाँ और तेजी से उभरेंगी। भारत का टेलीकाम उद्योग अब अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की ओर निगाह कर रहा है जिसके चलते आर-काम ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के साथ लगातार चर्चा की, भले ही यह वार्ता कुछ विधिक कारणों से सफल नहीं रही हो, लेकिन इस तरह के अन्य गठजोड़ों के लिए संभावनायें खुली हुई हैं। डाइवर्सिफाइड फंड होने की वजह से फंड मैनेजर के पास नये उभरने वाले अवसरों को भुनाने के लिए अच्छा मौका है।
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