Saturday, February 21, 2009
केवल दो तरह के ही लोग हैं
Thursday, February 19, 2009
साधू या शैतान.................
साधू या शैतान........................
साधुओं से मेरे अनुभव बहुत ही बुरे रहे हैं यहां तक कि अब मैं उनसे कभी नहीं मिलना चाहता, यहां एक बड़ा धार्मिक मेला लगा हुआ है। दादी के आग्रह करने पर मैं भी एक बाबा के आश्रम में चला गया। यहां पर मुझे बेहद अप्रिय अनुभव हुए। बाबा मुझसे आर्थिक स्थिति के बारे में पड़ताल करने लगा(लगे यूज नहीं कर रहा हूं क्योंकि वह साधू के भेष में शैतान था। घर की महिलाओं के बारे में उसकी दिलचस्पी से मैं बुरी तरह से व्यथित हो गया और गुस्से में बाहर आ गया। परिवार वाले नाराज हो गये कि इतने पहुंचे हुए बाबाजी का मैंने अपमान कर दिया। लेकिन धर्म के आड़ में अधर्म करने वाले इन ढोंगियों से अब कभी संवाद नहीं करने का फैसला मैंने किया है। थोड़ी दूर पर देखा, एक कोढ़ी जिसका अंग-अंग कोढ़ से गल गया था खून से लथपथ भीख मांग रहा था, मैंने जेब टटोली, केवल 10 के नोट थे तो मैं आगे बढ़ गया। तब मन में विचार आया कि कोढ़ग्रस्त भिखारियों के लिए हमारे पास केवल 1 या 2 रुपए होते हैं लेकिन ढोंग को बढ़ावा देने वाले इन साधुओं को गाली सुनने के बावजूद हम हजारों रुपए का दान कर देते हैं।