23 अप्रैल, मौहारी भाठा का दृश्य
बरगद के पेड़ के नीचे कुछ कुर्सियां लगा दी गई हैं। नीचे छांव में बड़ी संख्या में ग्रामीण बैठे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इनसे सरल छत्तीसगढ़ी में बात कर रहे हैं। उनका लहजा बेहद आत्मीय है। ऐसा लग रहा है कि गाँव का मुखिया अपने लोगों से बात कर रहा है। भीड़ में बैठे एक छोटे से बच्चे से उन्होंने प्रश्न पूछा कि स्कूल के दार-भात हा मिठाथे की नई, बच्चा शर्मा गया और बुजुर्गों के लगातार आग्रह करने पर उसने शर्माते हुए हौ कहा। इसके बाद रमन की नजर एक बुजुर्ग व्यक्ति पर गई। बिल्कुल ठेठ अंदाज में उन्होंने उससे पूछा कि बबा तोर तबियत कैसन हे, वृद्ध व्यक्ति ने उत्तर दिया कि तबियत हा तो नरम-गरम चलत हे। मुख्यमंत्री ने प्रश्न किया कि दवई मिलथे की नई, उसने कहां हां मिलथे तव, अऊ डाक्टर हा बेरा में अस्पताल आथे कि नहीं, उसने कहा हौ, आथे।
यह ठेठ अंदाज ही मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह की खासियत है जिसने उन्होंने रमन से चाऊंर वाले बाबा की श्रेणी में ला खड़ा किया है। गाँधी जी ने अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में लिखा था कि भारत की अधिकांश आबादी गाँवों में बसती है लेकिन प्रशासनिक तंत्र का ध्यान देहात की ओर बिल्कुल भी नहीं। भारत को अगर खुदमुख्तार होना है तो गाँवों की ओर झांकना ही होगा। इसके बावजूद देश में पचास साल तक सरकारी तंत्र ने गाँवों की ओर रूख नहीं किया। कभी-कभार असाधारण घटना हो जाने पर ही सरकारी अधिकारी गाँवों के दौरे करते हैं नेता तो चुनाव के समय ही। ऐसा प्रयास जनता के नेताओं ने जरूर किया। विनोबा भावे ने भूदान और सर्वोदय आंदोलन के लिए गाँवों का व्यापक दौरा किया। इसके बाद यह प्रक्रिया लंबे समय तक स्थगित थी। मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस परंपरा को पुनः आरंभ कराया है। सरकार आपके द्वार पर।
यह प्रश्न जरूर पूछे जा सकते हैं कि बरस में एक बार ऐसा अभियान चलाने से क्या हासिल हो जाएगा। क्या गाँवों की समस्या इससे दूर हो जाएगी। जी नहीं, बिल्कुल भी नहीं लेकिन ऐसा भी नहीं कि इससे सूरत नहीं बदलेगी। ग्राम सुराज अभियान अपने छठवें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है लोग अभी भी उत्सुकता से रमन का इंतजार करते हैं। यह वार्षिक प्रक्रिया है इसलिए आप एक बार वादे करके भूल नहीं सकते, जिन अधिकारियों ने ऐसा किया है उसका नतीजा भी सामने आया है। ऐसे गाँवों में लोगों ने ग्राम सुराज अभियान का विरोध किया है। दरअसल सरकार जब आम जनता से संवाद की प्रक्रिया शुरू करती है तभी जनता के भीतर आक्रोश का ज्ञान सरकार को हो पाता है। इसके बाद सरकारी मशीनरी सक्रिय होती है अगर ऐसा नहीं होता है तो इस चुनावी तंत्र में दोबारा जनता अपनी भूल नहीं दोहराती। सरकार के सामने देहात की वस्तुस्थिति आती है।
लोग अक्सर यह प्रश्न पूछते हैं कि रमन सिंह के दिमाग में ऐसे आइडिया कहाँ से आते हैं जो पूरे देश के लिए रोलमाडल बन जाते हैं। चाहे पीडीएस का मामला हो, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार की भूरी-भूरी सराहना की अथवा रतनजोत की बात हो जिसके लिए पूर्व राष्ट्रपति अबुल कलाम ने प्रदेश सरकार की सराहना की। इन सबके पीछे है रमन सिंह को मिलने वाला फीडबैक। यह फीडबैक उन्हें लगातार जनता से मिलता है क्योंकि वह जनता से नियमित संवाद करते हैं। हाल ही में निर्मल गाँव के लिए सम्मानित पंचायत पदाधिकारियों का सम्मान राजधानी के होटल बेबीलोन इंटरनेशनल में हुआ। मुख्यमंत्री ने औपचारिक भाषण देने के बजाय सीधे गाँवों की समस्या की बात शुरू की। उन्होंने कहा कि सरकार हा तव आप मन बर शौचालय बनवाथे लेकिन आप मन अपन कुकरी-बोकरी ला एमा पाल लेथव। उनके भाषण बतलाते हैं कि मुख्यमंत्री केवल योजनाएँ बनाकर नहीं छोड़ देते, वे नियमित जाँच करते हैं कि इनका क्रियान्वयन हो रहा है अथवा नहीं। यही वजह है कि उनकी योजनाएँ तुगलकी नहीं रह जाती, वे यथार्थ में कमाल कर देती है। गाँवों में आई समृद्धि के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि अब लोगों को भरपेट भोजन मिल रहा है। आर्थिक दुष्चिंताएँ कम हो रही हैं और लोग अब बचत भी करने लगे हैं।
मुख्यमंत्री के ग्राम सुराज अभियान की सफलता इसी बात से पता चलती है कि उपचुनावों में लगातार भाजपा को जीत मिल रही है। सुराज अभियान में ग्रामीणों के निडर चेहरे और साफगोई से ऐसा झलक जाता है कि वे लोकतांत्रिक शासन में रहते हैं जिनमें उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और वह खुलकर अपनी बात रख रहे हैं। यह अभियान जनता और सरकार के मध्य संवाद की कड़ी बन गया है। अब समय आ गया है कि मुख्यमंत्री को एक तंत्र बनाकर ग्राम सुराज अभियान में आई शिकायतों को समयबद्ध रूप से हल करने की कवायद करनी चाहिए, इससे यह संवाद की कड़ी अपने सबसे अच्छे रूप में काम कर पाएगी।