महंत को दिल्ली में ताज मिला है, इकलौते सांसद होने के नाते उनका रूतबा पार्टी में पहले ही बड़ा था, अब उनका कद और भी बढ़ गया है। जाहिर है कि इससे पहले ही गुटीय द्वंद्व में फंसी कांग्रेस में अंतर्विरोध और भी गहराएँगे। शक्ति के हिसाब से देखें तो फिलहाल प्रदेशाध्यक्ष के रूप में नंदकुमार पटेल और नेताप्रतिपक्ष रविंद्र चौबे भी अपना बाहुबल दिखाने में लगे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का गुट सक्रिय है इसी प्रकार शुक्ल गुट के लोग भी खोई जमीन तलाशने में लगे हैं।
महंत की ताजपोशी से दिलचस्प संभावनाएँ पैदा होंगी, जोगी को प्रदेश की राजनीति में अलग-थलग करने के प्रयास और तेज हो जाएंगे। बीते दिनों महंत की बढ़ती राजनीतिक महत्वाकाँक्षाओं के चलते जोगी गुट से संघर्ष तेज हो गए थे और संगठन चुनावों के दौरान इसकी बानगी भी देखने को मिली थी। महंत ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए जाँजगीर-चाँपा से लगे हुए क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत बनाई थी।
महंत के गद्दीनशीन होने के बाद दोनों के बीच संघर्ष और गहराने की आशंका है। हाल तक कांग्रेस में जोगी गुट काफी शक्तिशाली था, किसी विधायक को अगर जोगी गुट का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाया तो उसके लिए चुनावी नैया पार करना मुश्किल था। अब महंत गुट भी शक्तिशाली उभरेगा, आपसी रस्साकशी और बढ़ेगी। इससे हो सकता है कि कांग्रेस का संकट और गहरा जाए। जैसाकि कवासी लखमा के मामले में हुआ, जोगी गुट के खुलकर मैदान में आ जाने से दंडकारण्य में उनके कट्टर विरोधी नेता लखमा का अंदरूनी तौर पर जोर-शोर से विरोध करने लगे। इसका खामियाजा लखमा को भुगतना पड़ा। शक्तिशाली होते जा रहे महंत गुट से आपसी असहयोग के और गहराने की आशंका है।
कांग्रेस में जो तीसरा दिलचस्प समीकरण बन रहा है वो नंदकुमार पटेल का प्रदेशाध्यक्ष बना है। धनेन्द्र सक्रिय थे लेकिन बार-बार मिलने वाली असफलताओं ने उन्हें थका दिया था और उनके नेतृत्व में भविष्य में किसी लड़ाई में सफल हो पाने की संभावनाएँ भी कमजोर हो गई थीं। अब पटेल नई ऊर्जा से पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं उन्होंने प्रदेश सरकार के खिलाफ व्यापक मोर्चा खोला है। कार्यकर्ता उनके कार्यकाल में उत्साहित हैं। वे कभी जोगी के निकटस्थ सिपहसालारों में गिने जाते थे, लेकिन बढ़ती महत्वाकाँक्षाओं ने दोनों के बीच खाई जैसी बना दी है। पटेल कांग्रेस को अपने इर्द-गिर्द चलाना चाहते हैं पिछड़े वर्ग से होने के कारण इस वर्ग का साथ तो उन्हें है ही, पृथक बस्तर की माँग उछाल कर उन्होंने बस्तर में अपनी जमीन मजबूत बनाने का प्रयास किया है। इससे जोगी खुलकर उनके विरोध में आए। अपनी जमीन को तलाश करने पटेल जितना आगे जाएँगे, कांग्रेस में गुटीय संघर्ष और गहराएगा।
इतने अंतर्विरोधी से घिरी पार्टी अगर सत्ता में आ गई तो यह बिल्कुल चमत्कार जैसा होगा। अगर यह चमत्कार हुआ तो भी दिलचस्प समीकरण होंगे। सबसे कद्दावर नेता होने के नाते जोगी अपनी दावेदारी करेंगे ही, इसके लिए पर्याप्त संख्या में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की कोशिश करेंगे। महंत के लिए उन्हें रोक पाना काफी मुश्किल होगा क्योंकि लगभग दो दर्जन जोगी समर्थक अपने इलाकों में काफी शक्तिशाली हैं और उन्हें उपेक्षित करना आलाकमान के लिए संभव नहीं होगा। अगर पार्टी जोगी को स्टार कैंपनेर नहीं बनाती है तो उनके करिश्मे का लाभ उठाने से पार्टी चूक जाएगी। अगर बनाती है तो जोगी इसे कैश करना चाहेंगे। वहीं महंत अपने इकलौते सांसद होने व मंत्री होने के नाते अपना दावा प्रमुखता से रखेंगे। पटेल पार्टी को संजीवनी देने के अपने प्रयासों का जिक्र करेंगे और रविंद्र चौबे विधानसभा में प्रखर विरोध के लिए अपना दावा प्रबल करेंगे। अंतिम दो नेताओं की साफसुथरा छवि उनके पक्ष में हो सकती है क्योंकि रमन की स्वच्छ छवि और सौम्यता को टक्कर देने का माद्दा इन्हीं दो नेताओं में है।