Monday, November 3, 2008

क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदैव रूप रमणीयताया

दिल को कहीं चैन न मिला, मैं जिंदगी में यारों अकेला ही रहा। लाखों दिलवालों के बावजूद जिंदगी में एक अदद जीवनसाथी की तलाश रहती है। अगर कहें कि केवल एक तो यह भी तर्कसंगत नहीं होगा, क्योंकि जिंदगी बहुत से दोस्तों और उनके अंदर छुपी गहरी और अनूठी भावनाओं की तलाश करती रहती है। जहाँ यह मिल जाये तो लगता है कि किसी घने छायादार पेड़ के नीचे बैठ गये हों। होता यह भी है कि यह खुशी भी ज्यादा समय तक टिक नहीं पाती। भले ही यह ज्यादा समय तक न टिके लेकिन एक बात है इनकी स्मृति बहुत मधुर होती हैं कई बार तो इतनी कि सारी जिंदगी मनुष्य इसमें काट देता है। तो गहरी भावनायें हमेशा के लिए सुख देती हैं बशर्ते उनकी उत्पत्ति का स्रोत कोई सदानीरा आत्मा हो। संस्कृत ग्रंथों में भी लिखा है कि क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैति, तदैव रूप रमणीयताया अर्थात जो हर क्षण नवीनता से भरी हो, मिठाई सी नहीं कि खाया और बोर हो गये।

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