Thursday, March 12, 2009
समय का खेल हारने के बाद कोई भी सफलता अर्थपूर्ण है
काफी निराशा झेलने के बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगी और जब टूट गये तो सफलता ने उनके द्वार में दस्तक दी। मेरे एक सहयोगी ने मुझसे कहा कि टूटन भरे दौर में जब कहीं से कोई सहारा नहीं मिल रहा था उन्होंने हिम्मत नहीं हारी लेकिन सब कुछ पा लेने के बाद अजीब सा दर्द उनके अंदर समा गया है। उन्होंने मुझसे गीतांजलि की कविता शेयर की। दुख भरे क्षणों में नतमस्तक हो तेरे दर्शन तो करूं लेकिन दुख भरे क्षणों में जब सारी दुनिया मेरा उपहास करेगी तब शंकित न होऊं यही वरदान चाहता हूं। उनके लिए मैं क्या कर सकता हूं।
Tuesday, March 10, 2009
हिटलर की काली दुनिया
होली के पहले दिन जर्मन नरसंहार के बारे में पढ़ लिया। आश्वित्ज के कैंप में दुबले पतले लाखों लोगों को केवल मौत के घाट इसलिए उतार दिया गया क्योंकि वह दुर्भाग्य से यहूदी थे और उन लोगों ने व्यवसाय में सफलताएं अर्जित कर ली थी। कुछ लोग कहते हैं कि यहूदियों का चरित्र शाईलाक सा होता है मर्चेन्ट आफ वेनिस के व्यापारी सा, जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में खडूस कहते हैं। लेकिन फिर दूसरे पूंजीपतियों में क्या दोष होता है। कुछ सालों पहले मेरा एक छोटा भाई आया था मेरे घर। वह 10 वीं की परीक्षा में बैठा था और इतिहास में रूचि रखता था। उसने कहा कि वह मीन कैंफ खोज रहा है। मैंने पूछा क्यों, तुम गांधी को क्यों नहीं पढ़ते। उसने कहा कि गांधी ने भारत को आजादी दिलाई, इसमें भी मुझे शक है जबकि हिटलर ने तो अकेले दम पर ही दुनिया भर को हिला कर रख दिया। क्या हम अब भी अपनी इतिहास की किताबों में सिकंदर और चंगेज जैसे नायकों को शूरवीर बताकर महिमामंडित करते रहेंगे अथवा फिर से एक नई किताब लिखेंगे जहां पर हमारे धर्मग्रंथों की तरह हिटलर जैसे लोग राक्षसों की श्रेणी में रखे जायेंगे और इनसे कौम को बचाने वाले लोग भगवान का दर्जा पायेंगे।
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