Thursday, October 22, 2009

हिटलरशाही को बढ़ावा देने वाला जनादेश

विधानसभा चुनाव के नतीजे आज जैसे-जैसे आते गये, आम जनता में दो तरह की प्रतिक्रियाएं रही, एक तो तीनों राज्यों में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन को लेकर और दूसरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को मुंबई में मिली सफलता को लेकर। कांग्रेस की सफलता एक तरह से लोकसभा चुनाव की अगली कड़ी मानी जा सकती है और लंबे हनीमून का हिस्सा भी, जो संभवतः तब तक चलता रहे जब तक प्रतिद्वंद्वी एनडीए की भीतरी रस्साकशी में कोई नेता उभर कर सामने न आये। मनसे की सफलता अधिक महत्वपूर्ण है यह सफलता पूरी तौर पर राज ठाकरे की है जिन्होंने साबित कर दिया है कि वह अपने चाचा बाला साहब ठाकरे के वास्तविक उत्तराधिकारी है। भले ही यह नतीजे बाला साहब के लिए काफी निराशा से भरे हों लेकिन इन्होंने साबित कर दिया कि जिस राजनीति को लेकर शिवसेना को ठाकरे ने जन्म दिया उसकी अहमियत अब भी कायम है। वही राजनीति जिसकी शुरूआत कार्टुनिस्ट ठाकरे ने मुंबई की गलियों में कन्नड़ भाषी जनता का विरोध कर आरंभ की थी जिसको ऊंचाई हिंदू गौरववाद जैसे भावनात्मक मुद्दे ने और पाकिस्तान के विरूद्ध उग्रराष्ट्रवाद ने दी। ठाकरे की थीम में सब कुछ था, हर तरह से उग्र, हुंकार भरने वाला। लेकिन जिन्हें राजनीति आती है वह जानते हैं कि भावनात्मक मुद्दे स्पंज की तरह होते हैं इन्हें केवल एक बार पसीजा जा सकता है दूसरी बार कोशिश करे तो कुछ नहीं। शिवसेना ने सत्ता सुख चखा था और प्रमोद महाजन जैसे सत्ता तंत्र के काफी निकट लोगों का सहयोग भी इसके लिए हासिल किया था। भावनात्मक मुद्दों से दिनचर्या के काम नहीं चलाये जा सकते ये महाराष्ट्र की जनता ने शिवसेना के कार्यकाल में देख लिया था तो ठाकरे की राजनीति के लिए स्पेस नहीं बचा था और उद्धव के लिए तो कुछ भी नहीं क्योंकि न तो वे शेर की तरह लगते हैं और न ही उस तरह से गुर्रा सकते हैं। वैसे उनके चचेरे भाई और अब कट्टर प्रतिद्वंद्वी बन चुके राज शेर की तरह लगते हैं और इसकी तरह गुर्राते भी हैं(भले ही वह असली जिंदगी में उनके भीतर शेर का जिगर हो या नहीं) । राज ने साबित कर दिया है कि ठाकरे ने पुत्रमोह में भले ही उन्हें सत्ता सुख से वंचित कर दिया हो लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र में शिवसेना की सत्ता में गलत घोड़े पर दांव लगाने की गलती तो कर ही दी है।
राज की अभूतपूर्व सफलता ने कुछ सवाल उठाये हैं विशेषकर कुछ महीने पूर्व हुए लोकसभा के जनादेश के संबंध में किये जा रहे दावों पर। लोकसभा के नतीजों की व्याख्या करते हुए कहा गया था कि भारतीय मतदाता काफी समझदार हो गया है अब वह जातिवाद, संप्रदायवाद और क्षेत्रीयतावाद के नारों से उब चुका है और परिपक्व राजनीति की ओर आगे बढ़ रहा है। गौरतलब है कि इन चुनावों में राज ठाकरे की तरह का एक चेहरा पीलीभीत से चुनाव लड़ रहा था जिसका नाम था वरूण गांधी। जनादेश 2009 को एक तरह से राहुल की सौम्यता और वरूण की उग्रता के बीच की जंग के रूप में भी देखा गया था और लोगों ने कहा कि राहुल की जीत हुई है। जैसाकि ऊपर कहा गया कि विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के चल रहे सुखांत नाटक की अगली कड़ी का हिस्सा भर थे। राज ठाकरे की सफलता बताती है कि क्षेत्रीयतावाद जैसे मसले भारतीय राजनीति में अब भी अहम हैं और इससे वोट पड़ते हैं। दुख की बात है कि भारत की वित्तीय और सांस्कृतिक राजधानी से ऐसा जनादेश आ रहा है जो ऐसे व्यक्ति की पैरोकारी कर रहा है जो मराठी अस्मिता के नाम पर गालीगलौच का इस्तेमाल कर रहा है। दुख की बात यह भी है कि मुंबई ने सबसे ज्यादा महत्व उस व्यक्ति को दिया जो तब अपनी मांद में बैठा रहा जब आतंकवादी मुंबई की छाती को छलनी कर रहे थे।
राज की विधानसभा चुनावों में आशातीत सफलता को सीटों के लिहाज से कम नहीं आंकना चाहिए। हमे याद रखना चाहिए कि हिटलर की नाजी पार्टी को भी पहले चुनाव में 12 सीटें मिली थी और इसके बाद इनका आंकड़ा निरंतर बढ़ते ही गया था। राज ठाकरे को बढ़ाने में केवल वह लोग दोषी नहीं हैं जो क्षेत्रीयतावाद के खतरे को कम करके आंक रहे हैं इसके लिए वह भी दोषी हैं जो इसकी कर्कश आवाज को सुनकर भी कानों में ऊंगली डाले बैठें हैं।
ऐसे लोगों के लिए ही दिनकर ने कुरूक्षेत्र में लिखा है कि
“ समर शेष है रण का भागी केवल नहीं व्याघ्र, जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध

2 comments:

Anonymous said...

तमिलनाडू से लेकर केरल तक हिंदी भाषा और हिंदी भाषियों के लिए नफरत है. वहा के लोग हिंदी नही बोलते ना ही वोह बिहार या युपी के लोगोंको अपने शहर में बसने देते है. मराठी अब वही कर रहे है जो दुसरे गैर-हिंदी राज्य बहोत पहलेसे करते आ रहे है.

INDIAN said...

बेटा बेनामी उर्फ मराठी बनमानुष

बेकार की दलीले देकर राज ठाकरे को सही न ठहराओ

और हाँ जिस दिन उत्तर भारतीयो का गुस्सा फूट गया न तो एक एक मराठी को उत्तर भारत से जूते और लात मार मार कर भगाया जायेगा.
ये राज ठाकरे तो दीवाली के पटाखे की तरह है .जिसमे कोई दम नही है.
लेकिन जब उत्तर भारतीय का ज्वालामुखी फूटेगा तब पता लगेगा कि गुंडागर्दी क्या होती है

अभी एक बिहारी वीर युवक राहुल राज ने अकेले ही तुम सबके पिछवाड़े हिला दिये थे

जरा कल्पना करो कि बाकि सब उत्तर भारतीय का दिमाग फिर गया तो तुम मराठी कुत्तो का क्या हाल होगा

और तब तुम्हारा प्यारा कुत्ता राज ठाकरे ढूंढे नही मिलेगा