Wednesday, August 13, 2008

पावर

रिलायंस पावर डाइवर्सिफाइड फंडःकरार का पावर
शुक्रवार को भारत के विदेश सचिव शिवशंकर मेनन के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने वियना में आईएईए के बोर्ड आफ गर्वनर्स के साथ मिलकर न्यूक्लियर एग्रीमेंट से संबंधित महत्वपूर्ण करार को अंतिम रूप दिया भी नहीं था कि पावर सेक्टर से जुड़ी कंपनियों के उछाल से दलाल स्ट्रीट के सूचकाँक हरे निशान पर पहुँच गये। जहाँ जनवरी में लेफ्ट पार्टियों की असहमति के चलते परमाणु करार हाशिये पर जाता दिख रहा था और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह संवेदनशील टिप्पणी की थी कि हमें कई बार खोये हुए अवसरों से उपजे दुखों के साथ जीना पड़ता है। शायद प्रधानमंत्री की पीड़ा को पावर सेक्टर में निवेश करने वालों ने भोगा होगा। अब जबकि करार निर्णायक दिशा की ओर बढ़ रहा है तब पावर सेक्टर एक बार फिर बाजार के केंद्र में हैं और इस क्षेत्र में अब तक के सबसे सफल रहे फंड रिलायंस पावर डाइवर्सिफाइड फंड पर निवेशकों की पुनः नजर है।
करार से क्या होगी फंड की दिशाः
न्यूक्लियर करार के सफलतापूर्वक संपन्न होने के पश्चात न केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ इस दिशा में तेजी से काम करेंगी अपितु 1962 के आणविक कानून में संशोधन का रास्ता भी तैयार हो पायेगा जिसके चलते निजी क्षेत्र के उद्यमी न्यूक्लियर रियेक्टर का निमार्ण कर पायेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि न्यूक्लियर रियेक्टर के कमीशनिंग में लगने वाली मशीनरी का निर्माण करने वाली कंपनियों की चाँदी होगी। विशेष रूप से भेल, सीमेंस, एल एन्ड टी आदि कंपनियाँ इससे विशेष लाभान्वित होंगी। भेल तो इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अपने विदेशी भागीदारों की तलाश कर रहा है जबकि एनटीपीसी की इस दिशा में जीई इलेक्ट्रिकल्स से चर्चा चल रही है। अगर रिलायंस पावर डाइवर्सिफाइड फंड के पोर्टफोलियो आवंटन(30 जून तक) पर नजर डालें तो सबसे अधिक हिस्सा इंजीनियरिंग कंपनियों में(22 प्रतिशत) रखा गया है, जो कमीशनिंग के स्तर से लाभ उठायेंगे। इंजीनियरिंग कंपनियों में विशेष रूप से स्माल कैप स्टाक में फंड मैनेजर विशेष रूप से नजर रख सकते हैं जो फिलहाल एनपीसीआईएल को मशीनरी की आपूर्ति कर रहे हैं, ये ग्रोथ स्टाक हैं जिसमें स्वाभाविक रूप से सीमित अंतराल में बेहतर रिटर्न हासिल किये जा सकते हैं।
पावर रिफार्म का कमालः
रिलायंस डाइवर्सिफाइड फंड के पिछले 4 साल का रिटर्न स्तर देखें तो यह शानदार रहे हैं विशेष रूप से वर्ष 2007 में जब इस फंड ने 128 फीसदी तक रिटर्न दिये थे। गौरतलब है कि केवल परमाणु करार के आधार पर पावर करार के आधार पर पावर सेक्टर से बेहतर रिटर्न की उम्मीद करें तो यह तस्वीर को बहुत सतही तौर पर देखना होगा। जबकि बड़ी बात यह है कि न्यूक्लियर एनर्जी से अगले 25 सालों में कुल ऊर्जा उत्पादन का 6 फीसदी आयेगा। अधिकतर ऊर्जा का उत्पादन पारंपरिक साधनों से होगा, जिसके लिए एनटीपीसी सहित सभी बड़ी कंपनियाँ अपना उत्पादन स्तर बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं। इनके मूल्याँकन आकर्षक स्तर पर हैं और लंबे समय में यह मूल्यवर्धक होंगी। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में जिस तरह से पावर सेक्टर को विशेष तवज्जो दी गई है और सरकार जिस तरह से बिजली सुधारों की ओर की ओर गंभीर दिखती है उससे इस क्षेत्र में किये गये निवेश के दीर्घकाल में बड़े लाभ दिखेंगे। रिलायंस डाइवर्सिफाइड फंड में ओएनजीसी का 3.86 प्रतिशत(30 जून) शामिल किया गया है। ओएनजीसी जिस तरह से देश में नये आइल ब्लाक खोज रही है और विदेशी कंपनियों से बड़ी जाइंट वेंचर कर रही है उससे आइल एंड गैस सेक्टर की संभावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक क्षेत्र जो पहले बिल्कुल अछूता था लेकिन अब सुजलान द्वारा लगातार किये जा रहे बेहतर प्रदर्शन द्वारा प्रकाश में आ रहा है वह गैरपरंपरागत ऊर्जा का क्षेत्र है। फंड मैनेजर उन कंपनियों पर निवेश कर सकते हैं जो इस क्षेत्र में तेजी से निवेश कर रही हैं। वैसे क्रिसिल ने इस फंड के संबंध में नकारात्मक राय दी है लेकिन परमाणु करार ने काफी कुछ बदल दिया है।

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