Saturday, September 27, 2008

इंडियन टाइगर की दहाड़ सबसे तेज

इंडियन टाइगर की दहाड़ सबसे तेज
वर्ष 2004 में जब मेरिल लिंच ने इंडियन टाइगर फंड लाँच किया तो कुछ निवेश सलाहकारों ने टिप्पणी की थी कि इसकी दहाड़ भी भारतीय शेरों की तरह धीरे-धीरे शाँत हो जायेगी। अटकलों के विपरीत इंडिया टाइगर की दहाड़ न केवल समय के साथ शक्तिशाली होती गई अपितु मंदी के इस दौर में यह फंड मार्केट से सबसे ज्यादा पूँजी बटोरने वाले फंड्ज में शामिल रहा। इंडिया टाइगर को क्रिसिल ने प्रथम श्रेणी के फंड में शामिल किया है और इसे खरीदने की सलाह दी है। इंडिया टाइगर की स्टाक मार्केट की परफेक्ट टाइमिंग और स्टाक के सही चुनाव का पता इसी आधार पर लगाया जा सकता है कि इसने पिछले 1 महीने में कड़ी मेहनत की है और इसका वार्षिक रिटर्न कुछ सुधर कर 4.2 प्रतिशत(नकारात्मक) हो गया है।
क्या है खासः
इंडिया टाइगर(द इंफ्रास्ट्रक्चर एंड गवर्मेंट रिफार्म्स) द्वितीय चरण के आर्थिक सुधारों का लाभ निवेशकों को देने लाँच किया गया। यह वह दौर था जब एनडीए सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के बड़े प्रोजेक्ट्स की स्वीकृति दे दी थी और इसके अनुरूप देश में पहली बार चीन के एक्सप्रेस वे की तरह की सड़कों का महत्व समझा गया। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया और स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी परियोजनाएं शुरू हुई। पीपीपी(पब्लिक-प्राइवेट-पार्टिसिपेशन) के आधार पर निजी और सार्वजनिक दोनों तरह की कंपनियों को इसका लाभ उठाने अवसर मिले। बीओटी(बिल्ड आपरेट ट्राँसफर) के विचार के चलते सड़कों की गुणवत्ता में भी सुधार आया। यूपीए सरकार ने भी रिफार्म्स को जारी रखा। इन परियोजनाओं के चलते स्टील,सीमेंट और इंजीनियरिंग कंपनियों में बूम आना था जिसका लाभ फंड को हुआ। फंड की थीम का दूसरा पहलू यह था कि पावर सेक्टर और ट्राँसपोर्टेशन में हुई प्रगति का सीधा लाभ टेलीकाम जैसे सर्विस सेक्टर को मिलेगा। अगर वर्ष 2008 की छमाही को छोड़ दिया जाये तो फंड ने सतत रूप से बेहतर रिटर्न दिये हैं। फंड के पोर्टफोलियो पर ध्यान दें तो फंड मैनेजर ने उन कंपनियों को चुना है जो भविष्य में शानदार रिटर्न दे सकते हैं।
किन कंपनियों पर लगाया दाँवः
इंडिया टाइगर फंड ने सबसे अधिक दाँव इंजीनियरिंग कंपनियों पर(16.74 फीसदी) लगाया है जिसके अंतर्गत एल एन्ड टी पर 5.74 प्रतिशत और भेल पर 4.54 फीसदी पूँजी लगाई गई है। इन दोनों कंपनियों के आर्डरबुक पर नजर डालें तो यह अगले पाँच-छह सालों के लिए बुक हैं। परमाणु करार संपन्न होने के पश्चात स्थापित होने वाले रियेक्टरों को मशीनों की आपूर्ति इन्हीं कंपनियों से होगी। 1962 के परमाणु करार में संशोधन होने के पश्चात अमेरिकन कंपनियों से भारतीय कंपनियों के गठजोड़ की संभावनायें बढ़ जायेंगी। भेल की इस संबंध में अमरीका की दिग्गज कंपनियों से चर्चा चल रही है। आईल एंड गैस सेक्टर काफी महत्वपूर्ण है इस पर फंड मैनेजर ने 11.2 फीसदी दाँव लगाया है। रिलायंस पर 4.54 फीसदी और ओएनजीसी पर 2.56 प्रतिशत का दाँव लगाया गया है। रिलायंस के तिमाही आंकड़ों पर ध्यान दें तो रिफाइनरी से हुई आय में अच्छी-खासी वृद्धि हुई है। रिलायंस के पेट्रोल पंप घरेलू कंपनियों को सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के चलते प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे थे, अब इन्हें बंद कर कंपनी निर्यात की ओर ध्यान दे रही है जिसका सीधा प्रभाव तिमाही नतीजों में नजर आ रहा है। 2002 से पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य-निर्धारण को प्रशासनिक नियंत्रण से हटाकर बाजार की शक्तियों से स्वयं मूल्याँकित होने की छूट दी गई जिसका लाभ यह फंड उठाता रहा है। फिलहाल जब बी के चतुर्वेदी समिति विंडफाल टैक्स लगाने की सिफारिश कर रही है तब इस सेक्टर को थोड़ा नुकसान पहुँचने की आशंका बनती है और संभव है कि फंड मैनेजर इसके अनुकूल पोर्टफोलियो में थोड़ा बदलाव करे। बैंकिंग एवं फाइनेंस सेक्टर में पोर्टफोलियो का 11.2 फीसदी हिस्सा लगाया गया है और इस सेक्टर की दो दिग्गज कंपनियों एसबीआई एवं आईसीआईसीआई पर क्रमशः 2.56 फीसदी का दाँव लगाया गया है। बैसेल -2 के मानकों के लागू होने तथा अंतरराष्ट्रीय बैंकों के प्रवेश के पश्चात बैंकिंग गतिविधियों में तीव्र विस्तार होगा जिसका सीधा लाभ बैंकिंग सेक्टर को मिलेगा। अगर बैंकिंग सेक्टर से जुड़ी कंपनियों का मूल्याँकन देखें तो इनमें से अधिकाँश लगभग 30 फीसदी तक गिरे हुए हैं। मेटल और माइनिंग कंपनियों पर पोर्टफोलियो का 8.54 फीसदी लगाया गया है। परमाणु करार संपन्न होने के पश्चात स्टील सेक्टर में भी बूम आने की संभावनायें निवेश सलाहकार जता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ही उड़ीसा में पास्को के प्लाँट को इजाजत दी है इसके साथ ही मेटल सेक्टर में कई परियोजनायें शुरू होने का लाभ सीधे माइनिंग कंपनियों को मिलेगा। अगर टेलीकाम पर नजर डालें तो इसकी ग्रोथ स्टोरी अभी अधूरी ही है भारत में टेलीफोन घनत्व अभी तक 20 फीसदी के स्तर तक भी नहीं पहुँचा है। फंड मैनेजर ने टेलीकाम पर 7.66 फीसदी दाँव लगाया है इसके अंतर्गत भारती एयरटेल पर 3.34 फीसदी और आर काम पर 3.05 फीसदी दाँव लगाया है। 3-जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से टेलीकाम कंपनियाँ और तेजी से उभरेंगी। भारत का टेलीकाम उद्योग अब अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की ओर निगाह कर रहा है जिसके चलते आर-काम ने दक्षिण अफ्रीकी कंपनी एमटीएन के साथ लगातार चर्चा की, भले ही यह वार्ता कुछ विधिक कारणों से सफल नहीं रही हो, लेकिन इस तरह के अन्य गठजोड़ों के लिए संभावनायें खुली हुई हैं। डाइवर्सिफाइड फंड होने की वजह से फंड मैनेजर के पास नये उभरने वाले अवसरों को भुनाने के लिए अच्छा मौका है।

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