Wednesday, August 13, 2008

आईएनजी

आईएनजी का एनएफओः लैटिन अमेरिकी खजाने से लाभ
जब स्पेनिश सेना की टुक़ड़ियाँ पहली बार लैटिन अमेरिका में उतरी और अकूत संपदा से समृद्ध स्थानीय माया और इंका सभ्यता को उजाड़ा तब यूरोप में स्पेन के राजा फर्डिनेंड का कहा हुआ यह वाक्य बड़ा ही प्रसिद्ध हुआ कि स्पेन अब यूरोप का राजा है क्योंकि प्राचीन सभ्यताओं के खजाने अब हम तक पहुँच गये हैं। स्पेनिश आक्रमण के चार सदियों बाद तक हाशिये में पहुँच चुका लैटिन अमेरिका पुनः एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है और भारत के निवेशक भी इसके विस्तृत संभावनाओं से लाभ उठा सकते हैं। आईएनजी म्यूच्युअल फंड ने दक्षिण अमेरिका के बाजारों का लाभ भारतीय निवेशकों तक पहुँचाने आईएनजी लैटिन अमेरिका फंड प्रस्तुत किया है।
कमोडिटी से मिलेगा लाभः
अगर लैटिन अमेरिका के लैंडस्केप पर नजर डालें तो प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बेहद समृद्ध है। सोने और चाँदी जैसी कीमती धातुओं से लेकर कापर तक दक्षिण अमेरिका खनिज पदार्थों के मामले में विविधता से भरा महाद्वीप है। चाहे चिली के भंडार लें अथवा इक्वेडोर के पेट्रोलियम भंडार, लंबे समय से लैटिन अमेरिका के संसाधनों का उचित दोहन नहीं हो रहा था। फिलहाल ऐसे समय में जब कमोडिटी के भाव आसमान छू रहें हैं तब कमोडिटी एक्सपोर्ट करने वाले लैटिन अमेरिकी देशों की वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूछपरख काफी बढ़ गई है। ब्राजील और मैक्सिको जैसे देशों में हाल के वर्षों में मध्य वर्ग की आय में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है इसके साथ ही इन देशों में राजनैतिक अस्थिरता भी कम हुई है। मर्कासुर जैसे क्षेत्रीय संगठनों तथा ब्रिक जैसे अतंरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से लैटिन अमेरिका अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। ब्राजील ने काफी, कोको और खाद्यान्न के उत्पादन में इधर के वर्षों में खासी प्रगति की है। निर्यात से लैटिन अमेरिकी देश अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर ही रहे हैं साथ ही घरेलू मोर्चे पर भी अर्थव्यवस्था में लगातार माँग उठ रही है।
अब तक 48 फीसदी रिटर्नः
जहाँ डोजोंस सहित दुनिया भर के सूचकाँक रेड सिग्नल दिखा रहे हैं वहीं लैटिन अमेरिकी देशों के सूचकाँक अब भी ग्रीन सिग्नल दिखा रहे हैं। अमेरिकी निवेशकों के लिए निकाले गये आईएनजी के लैटिन अमेरिकी फंड ने अब तक 48 फीसदी तक रिटर्न दिये हैं। इसके बावजूद कई मौके ऐसे आये जब फंड बेंचमार्क एमएससीआई इंडेक्स की तुलना में कमतर रहा। फिलहाल फंड 100 फीसदी पूँजी इक्विटी में लगाने वाला है और इसका भी अधिकतर हिस्सा ब्राजील(57 फीसदी) में लगाने वाला है।
क्या है जोखिमः
लैटिन अमेरिकी देशों में निवेश करने में सबसे बड़ी आशंका यहाँ की अस्थिर राजनीति है। ह्यूगो शावेज के नेतृत्व में लैटिन अमेरिकी देशों में यूएस के खिलाफ ध्रुवीकरण हो रहा है जिसके चलते आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में संकट की स्थिति निर्मित हो सकती है जो यहाँ के आर्थिक वातावरण के लिए समस्या खड़ी कर सकती है। दूसरा संकट बैंकिंग सिस्टम को लेकर हो सकता है जैसाकि 20 वीं सदी के अंतिम वर्षों में मैक्सिको ने झेला था। जैसाकि भारत की आर्थिक तकदीर मानसून से लिखी जाती है वैसे ही अलनिनो लैटिन अमेरिकी देशों की आर्थिक तकदीर की इबारत लिखता मिटाता रहता है। अगर अलनिनो का प्रभाव रहा तो फसल बर्बाद और नहीं रहा तो खुशकिस्मत किसान।
फंड फीचर
आईएनजी लैटिन अमेरिका फंड
एनएफओ ओपन-19 जून
एनएफओ क्लोज-10 जुलाई
टाइप-ओपन एन्डेड
पूंजी आवंटन-100 फीसदी इक्विटी
बेंचमार्क-एमएससीआई ईएम
आप्शन- ग्रोथ, डिविडेंट एवं बोनस
एन्ट्री लोड-2.5 फीसदी

मीना फंड

अलीबाबा का खजाना भारतीय निवेशकों के लिए…...........
भारत का हर निवेशक और तरक्की पसंद व्यवसायी धीरुभाई अंबानी से प्रेरणा ग्रहण करना पसंद करता है अगर आप भी उनके मुरीदों में से हैं और उनकी परीकथा जैसी जीवनी से प्रेरणा लेना चाहते हैं तो आपको उनके मिडिल ईस्ट में गुजारे हुए दिनों को खंगालना होगा जहाँ से उन्होंने व्यावसायिक कूटनीति के गुर सीखे और पहली बार आजमाये भी। जब धीरुभाई अदन में थे और मामूली सी नौकरी कर रहे थे तब यूनान की सरकार के समक्ष एक बड़ा मौद्रिक संकट आया, वह यूँ कि यूनान के आधिकारिक सिक्के धीरे-धीरे मार्केट से गायब होने लगे। जब इस बाबत जाँच एजेंसियों को लगाया गया तब मालूम हुआ कि सिक्के अदन में रहने वाला भारतीय मूल का एक नागरिक धीरुभाई अंबानी मँगवा रहा है। प्रथमदृष्टया तो जाँच अधिकारियों को इसका कारण समझ नहीं आया लेकिन विस्तृत तफ्तीश करने पर पाया गया कि धीरुभाई सिक्कों को गलाकर धातु अदन के सराफा व्यवसायियों के पास बेच रहे थे जिससे उन्होंने भारी मुनाफा कमाया। यहाँ पर जितना कमाल धीरुभाई का है उतना ही कमाल मिडिल ईस्ट की मिट्टी का, जहाँ हर महत्वाकाँक्षी निवेशक के लिए असीम संभावनायें हैं। विदेशी फंडों को अनुमति देने में कई तरह की पेंच की वजह से हाल तक यह क्षेत्र एफआईआई के मध्य लोकप्रिय नहीं था, इन बाधाओं को पार करते हुए फ्रेंकलिन टेंपलटन ने दुनिया के विभिन्न देशों में हाल ही में मीना फंड लाँच किये जो मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका की अर्थव्यवस्था में पूँजी लगाते हैं। भारतीय निवेशकों को मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका के बाजार का लाभ दिलाने फ्रेंकलिन टेंपलटन ने मीना फंड का प्रस्ताव सेबी के समक्ष रखा है।
मिडिल ईस्ट पर दाँव क्यों ?
भारत एवं अन्य देशों के शेयर बाजार भले ही कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के चलते हाँफ रहे हों लेकिन इनकी कीमतों में आई तेज बढ़ोत्तरी से जिन देशों को प्रत्यक्ष लाभ हो रहा है वह ओपेक देश हैं विशेषकर कुवैत और सऊदी अरब जैसे देश, जहाँ के राजनैतिक तंत्र अमेरिकन व्यवस्था के करीब हैं और जिनमें राजनैतिक स्थायित्व भी अन्य मिडिल ईस्ट देशों से अधिक है। विदेशी फंडों की निगाहें इस ओर मुड़ने का स्पष्ट कारण तेल की बढ़ती कीमतें हैं। पिछले साल के 70 डालर प्रति बैरल से बढ़कर 130 डालर प्रति बैरल तक पहुँच जाने की वजह से तेल उत्पादक इन देशों की सरकारों का राजस्व तेजी से बढ़ा है। यह पूँजी सीधे आधारभूत संरचनाओं में लगाई जा रही है। आईएमएफ ने इस वर्ष की अपनी रिपोर्ट में इस क्षेत्र की विकास दर 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है और इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के संबंध में सकारात्मक टिप्पणी की है। फ्रेंकलिन टेंपलटन के मिडिल ईस्ट क्षेत्र का वित्तीय प्रबंधन करने वाले स्टीफन डावर मध्य एशिया में दाँव लगाने के निम्न कारण गिनाते हैं।
(1) डिकपल इकानामीः मीना देशों के बाजार का वैश्विक बाजारों से न्यूनतम संबंध(.112) है जबकि उभरते हुए देशों(इमर्जिंग इकानामी) का इनसे संबंध अधिक गहरा(.66) है।(सहसंयोजी गुणाँक) स्वाभाविक रूप से वैश्विक बाजारों की मंदी का इस फंड पर न्यूनतम असर होगा।
(2) आकर्षक मूल्याँकन पर घरेलू कंपनियाँ –रेटिंग एजेंसी एस एन्ड पी की गणना के मुताबिक मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका की कंपनियों के शेयर इमर्जिंग मार्केट की तुलना में अपेक्षाकृत कम मूल्याँकन पर उपलब्ध हैं।
(3) मुद्रा के अल्पमूल्याँकन का लाभः विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल मीना क्षेत्र की मुद्रा 10 से 15 फीसदी अल्पमूल्याँकित हैं भविष्य में इस स्थिति में सुधार होगा जिसका लाभ घरेलू कंपनियों को मिलेगा।
किस सेक्टर में लगायेंगे दाँवः
फ्रेंकलिन टेंपलटन की नजर तीन क्षेत्रों पर है। पहला तो रीयल एस्टेट से संबंधित हैं, अनुकूल ब्याज दरों के चलते रीयलिटी सेक्टर में और अधिक उफान आने की संभावना फंड मैनेजर लगा रहे हैं। दूसरा क्षेत्र लाजिस्टक और वेयरहाऊसिंग से जुड़ा हुआ है, यह ऐसे क्षेत्र हैं जो मुद्रास्फीति के चलते बढ़ी लागत को पूरी तौर पर उपभोक्ता को हस्तांतरित करने में सक्षम हैं। तीसरा क्षेत्र फर्टिलाइजर से जुड़ा है, दुनिया भर में कमोडिटी के संकट के चलते कृषि सुधारों पर ध्यान दिया जा रहा है और ऐसे में फर्टिलाइजर(प्राकृतिक गैस से उत्पादित) की माँग तेजी से बढ़ रही है।
क्या है जोखिमः
मीना देशों के बाजार पर विदेशी फंडों की निगाह का कारण तेजी से बढ़ती कच्चे तेल की कीमतें हैं। यद्यपि माँग और आपूर्ति का सिद्धाँत तेल कीमतों के बढ़ने के पक्ष में वकालत करता है लेकिन एक साल में ही कीमतें दूगनी पहुँच जाना किसी न किसी तरह के स्पैक्युलेशन(सट्टागत प्रवृत्ति) की ओर जरूर इशारा करता है। मीना देशों के विपरीत अधिकाँश इमर्जिंग देशों में विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक की गति से बढ़ रही है। सबसे बड़ा जोखिम इन क्षेत्रों की अस्थिर राजनैतिक स्थिति का है। जेरुसलम पोस्ट में इजराइल की मिलेट्री तैयारी(ईरान और अमेरिका में बढ़ते गतिरोध के चलते) से संबंधित जिस तरह की खबरें छपी हैं भले ही इजराइल ने इसका खंडन कर दिया है लेकिन इससे यहाँ के तनावपूर्ण माहौल का अनुमान लगाया जा सकता है। दूसरी आशंका मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका के बाजारों की परिपक्वता को लेकर हो सकती है। बरसों तक यहाँ के बाजार विदेशी बाजारों से असंबद्ध (डिकपल्ड) रहे जिससे वित्तीय गड़बड़ियों से निपटने के यहाँ की नियामक संस्थाओं की सक्षमता पर प्रश्न चिह्न खड़े किये जा सकते हैं।(गौरतलब है कि भारत तथा अमेरिका जैसे देशों ने वित्तीय गड़बड़ियों के लंबे अनुभवों से हर बार सीख लेकर नियामक तंत्र को अधिक सक्रिय बनाने का प्रयास किया है।)

पावर

रिलायंस पावर डाइवर्सिफाइड फंडःकरार का पावर
शुक्रवार को भारत के विदेश सचिव शिवशंकर मेनन के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने वियना में आईएईए के बोर्ड आफ गर्वनर्स के साथ मिलकर न्यूक्लियर एग्रीमेंट से संबंधित महत्वपूर्ण करार को अंतिम रूप दिया भी नहीं था कि पावर सेक्टर से जुड़ी कंपनियों के उछाल से दलाल स्ट्रीट के सूचकाँक हरे निशान पर पहुँच गये। जहाँ जनवरी में लेफ्ट पार्टियों की असहमति के चलते परमाणु करार हाशिये पर जाता दिख रहा था और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह संवेदनशील टिप्पणी की थी कि हमें कई बार खोये हुए अवसरों से उपजे दुखों के साथ जीना पड़ता है। शायद प्रधानमंत्री की पीड़ा को पावर सेक्टर में निवेश करने वालों ने भोगा होगा। अब जबकि करार निर्णायक दिशा की ओर बढ़ रहा है तब पावर सेक्टर एक बार फिर बाजार के केंद्र में हैं और इस क्षेत्र में अब तक के सबसे सफल रहे फंड रिलायंस पावर डाइवर्सिफाइड फंड पर निवेशकों की पुनः नजर है।
करार से क्या होगी फंड की दिशाः
न्यूक्लियर करार के सफलतापूर्वक संपन्न होने के पश्चात न केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ इस दिशा में तेजी से काम करेंगी अपितु 1962 के आणविक कानून में संशोधन का रास्ता भी तैयार हो पायेगा जिसके चलते निजी क्षेत्र के उद्यमी न्यूक्लियर रियेक्टर का निमार्ण कर पायेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि न्यूक्लियर रियेक्टर के कमीशनिंग में लगने वाली मशीनरी का निर्माण करने वाली कंपनियों की चाँदी होगी। विशेष रूप से भेल, सीमेंस, एल एन्ड टी आदि कंपनियाँ इससे विशेष लाभान्वित होंगी। भेल तो इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अपने विदेशी भागीदारों की तलाश कर रहा है जबकि एनटीपीसी की इस दिशा में जीई इलेक्ट्रिकल्स से चर्चा चल रही है। अगर रिलायंस पावर डाइवर्सिफाइड फंड के पोर्टफोलियो आवंटन(30 जून तक) पर नजर डालें तो सबसे अधिक हिस्सा इंजीनियरिंग कंपनियों में(22 प्रतिशत) रखा गया है, जो कमीशनिंग के स्तर से लाभ उठायेंगे। इंजीनियरिंग कंपनियों में विशेष रूप से स्माल कैप स्टाक में फंड मैनेजर विशेष रूप से नजर रख सकते हैं जो फिलहाल एनपीसीआईएल को मशीनरी की आपूर्ति कर रहे हैं, ये ग्रोथ स्टाक हैं जिसमें स्वाभाविक रूप से सीमित अंतराल में बेहतर रिटर्न हासिल किये जा सकते हैं।
पावर रिफार्म का कमालः
रिलायंस डाइवर्सिफाइड फंड के पिछले 4 साल का रिटर्न स्तर देखें तो यह शानदार रहे हैं विशेष रूप से वर्ष 2007 में जब इस फंड ने 128 फीसदी तक रिटर्न दिये थे। गौरतलब है कि केवल परमाणु करार के आधार पर पावर करार के आधार पर पावर सेक्टर से बेहतर रिटर्न की उम्मीद करें तो यह तस्वीर को बहुत सतही तौर पर देखना होगा। जबकि बड़ी बात यह है कि न्यूक्लियर एनर्जी से अगले 25 सालों में कुल ऊर्जा उत्पादन का 6 फीसदी आयेगा। अधिकतर ऊर्जा का उत्पादन पारंपरिक साधनों से होगा, जिसके लिए एनटीपीसी सहित सभी बड़ी कंपनियाँ अपना उत्पादन स्तर बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं। इनके मूल्याँकन आकर्षक स्तर पर हैं और लंबे समय में यह मूल्यवर्धक होंगी। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में जिस तरह से पावर सेक्टर को विशेष तवज्जो दी गई है और सरकार जिस तरह से बिजली सुधारों की ओर की ओर गंभीर दिखती है उससे इस क्षेत्र में किये गये निवेश के दीर्घकाल में बड़े लाभ दिखेंगे। रिलायंस डाइवर्सिफाइड फंड में ओएनजीसी का 3.86 प्रतिशत(30 जून) शामिल किया गया है। ओएनजीसी जिस तरह से देश में नये आइल ब्लाक खोज रही है और विदेशी कंपनियों से बड़ी जाइंट वेंचर कर रही है उससे आइल एंड गैस सेक्टर की संभावनाओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। एक क्षेत्र जो पहले बिल्कुल अछूता था लेकिन अब सुजलान द्वारा लगातार किये जा रहे बेहतर प्रदर्शन द्वारा प्रकाश में आ रहा है वह गैरपरंपरागत ऊर्जा का क्षेत्र है। फंड मैनेजर उन कंपनियों पर निवेश कर सकते हैं जो इस क्षेत्र में तेजी से निवेश कर रही हैं। वैसे क्रिसिल ने इस फंड के संबंध में नकारात्मक राय दी है लेकिन परमाणु करार ने काफी कुछ बदल दिया है।
मिलिनियर की दौड़ मैराथन जैसी
न्यूयार्क टाइम्स के प्रसिद्ध कालम लेखक और फाइनेंशियल प्लानर रसेल बैलियन ने अपनी पुस्तक प्लानिंग लीड्स टू वेल्थ में लिखा है कि हममें से हर कोई वारेन बफेट अथवा जार्ज सोरोस की तरह मिलिनियर बनना चाहता है लेकिन शायद ही कोई इस तक पहुँचने के सीधे रास्ते में चलने का चुनाव पसंद करता है। बैलियन ने करोड़पति बनने का जो फार्मुला दिया है वह बेहद सीधा-सादा है। उनका मानना है कि शेयर बाजार में निवेश मैराथन दौड़ की तरह है अगर सारी ऊर्जा जल्दी-जल्दी लगा दी जाये तो निवेशक अंतिम बिंदु तक आते-आते चूक जाता है। उनके कहने का सीधा तात्पर्य है कि जो निवेशक डेरिवेटिव उत्पादों में पूँजी लगाते हैं अथवा डे-ट्रेडिंग का सहारा लेते हैं उनका निवेश लक्ष्य कभी तय नहीं हो पाता और अक्सर यह होता है कि किसी बड़ी गिरावट के वक्त फायदे की अंधी दौड़ में शामिल यह निवेशक औंधे मुँह गिरते हैं।
कहाँ से हो शुरूआतः
मिलिनियर होने के लिये अथवा किसी बड़े निवेश लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्ययोजना बनानी जरूरी है। आप दो कारणों से निवेश करते हैं एक तो लंबी अवधि की परिपक्वता के लिए और दूसरा अल्पावधि में आने वाली निवेश आवश्यकताओं के लिए। उदाहरण के लिए रिटायरमेंट प्लानिंग करने वाला हर निवेशक अपने निकट भविष्य की जरूरतों(बच्चों की पढ़ाई, विवाह आदि खर्च) की आपूर्ति करने वाला निवेश साधन चाहता है। बाजार में उपलब्ध फाइनेंशियल उत्पाद जोखिम के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बंटे होते हैं और जोखिम उठाने की निवेशक की क्षमता के अनुसार भविष्य में इनके द्वारा दिये गये रिटर्न की संभावनाओं का अनुमानित खाका भी खींचा जा सकता है। यहाँ पर निवेशक को अपने न्यूनतम एवं अधिकतम लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए। न्यूनतम जो बेसिक नीड्स को पूरा करें उदाहरण के लिए रिटायरमेंट के बाद एक निश्चित आय जिससे महीने का खर्च आसानी से निवेशक निकाल पाये। न्यूनतम लक्ष्य को प्राप्त करने निवेशक को रिटर्न की गारंटी वाले साधनों उदाहरण के लिए बैंक एफडी का सहारा लेना चाहिए। निवेशक म्युच्युअल फंड के एफएमपी उत्पादों का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसके बाद निवेशक को अपने साधनों के अनुरूप अधिकतम लक्ष्य तय करने चाहिए। उदाहरण के लिए निवेशक अगर 15 प्रतिशत रिटर्न चाहता है तो इसके लिए इक्विटी का फ्लेवर आवश्यक है अतः निवेशक को इस स्तर पर जोखिम लेना होगा।
मिलिनियर बनने कैसा हो पोर्टफोलियोः
रसेल बैलियन ने अमेरिकी निवेशकों के लिए एक आदर्श पोर्टफोलियो तैयार किया है। भारतीय बाजार की प्रकृति और यहाँ उपलब्ध फाइनेंस उत्पादों के आधार पर प्रत्येक आयु वर्ग के निवेशकों के लिए उसी तरह का आदर्श पोर्टफोलियो बनाने की कोशिश की जा सकती है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आप 30 साल के हैं और आप सेवानिवृति तक 1 करोड़ रुपए का लक्ष्य रखते हैं। लक्ष्य को प्राप्त करने आपको सबसे पहले अपनी मासिक बचत का ध्यान रखना होगा। अगर आप मासिक आधार पर 3000 रुपए तक बचा लेते हैं तब आप 2000 रुपए प्रति माह डेट और आबिर्ट्रज फंड में लगा सकते हैं और शेष 1000 रुपए एसआईपी के माध्यम से किसी अच्छे इक्विटी फंड में लगा सकते हैं। जहाँ डेट फंड आपके पोर्टफोलियो में मूल पूँजी को सुरक्षित रखने का न्यूनतम आश्वासन देंगे, वहीं आर्बिटेज फंड डेट उपकरणों की तुलना में थोड़ा बेहतर रिटर्न प्राप्त करने में सहायक होंगे। अगर इस आँकड़े को बाजार के पिछले ट्रैक रिकार्ड के आधार पर परखें तो निवेशक को 12 फीसदी तक का रिटर्न प्राप्त हो सकता है जो उसे मिलिनियर बनने के लक्ष्य तक पहुँचा सकता है।
इक्विटी का फ्लेवर क्यों और कबः
पिछले अनुभवों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दीर्घकालीन नजरिये से समस्त निवेश साधनों में इक्विटी सर्वाधिक रिटर्न देने वाले साबित होते हैं। उदाहरण के लिए अगर इसी आयु वर्ग के निवेशक की मासिक बचत 2000 रुपए हो तो अगले तीस सालों में करोड़पति बनने के लिए इसे 15 फीसदी के दर से रिटर्न देने वाले निवेश साधनों में बचत लगानी होगी। स्वाभाविक है इसके लिए इक्विटी का फ्लेवर बढ़ाना होगा। यहाँ पर निवेशक के लिए बैलेंस फंड बेहतर साबित होंगे जो बाजार की परिस्थिति के अनुरूप डेट और इक्विटी में एक्सपोजर को संतुलित करते चलते हैं। अगर निवेशक की बचत थोड़ी अधिक होती है और वह ऊंचे निवेश लक्ष्य चाहता है तब उसे डाइवर्सिफाइड इक्विटी फंड में एक्सपोजर बढ़ाना चाहिए। यहाँ उसे ध्यान रखना चाहिए कि ईएलएसएस(इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) की ओर भी थोड़ा ध्यान दे ताकि कर में छूट का लाभ भी उसकी बचत को बैंलेस करे।