Saturday, October 2, 2010
जन्मभूमि का फैसला तय करेगा राजनीतिक दशा
राम जन्मभूमि पर हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के फैसले से देश का राजनीतिक वातावरण एक बार फिर से गरम हो चला है। राजनीतिक दलों ने फैसले के बाद निश्चित राजनीतिक दिशा तय कर ली है। इस राजनीतिक नजरिये में नब्बे के दशक जैसा सख्त रूख नहीं रखा गया है। भारतीय जनता पार्टी जिसने मंदिर आंदोलन को जन्म दिया था और इस पर आरूढ़ होकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंची थी। फैसले के बाद एक बार पुन: ऊर्जा से भर गई है। संयोगवश बाबरी मस्जिद ढहाये जाने के बाद के 20 साल उदारीकरण के साल भी हैं। इन सालों में भारतीय जनता की सोच में बुनियादी बदलाव भी आये हैं। उदारीकरण ने भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने के लिये प्रेरित किया है। इसके चलते देश का ध्यान संकीर्ण मानसिकता से निकलकर वृहत्तर लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बढ़ा है। नई पीढ़ी धार्मिक ध्रुवीकरण के खतरों को समझती है। यही वजह है कि भाजपा के रूख में भी बदलाव आया है। भाजपा ने फैसले की संयमित व्याख्या की और दूसरे पक्ष से भी संवाद करने पर जोर दिया। फैसला ऐसे वक्त में आया है जब बिहार में चुनाव होने वाले हैं। राजद नेता फैसले से काफी हलाकान हैं। जहां जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ा नागरिक भाजपा के साथ जुड़ाव महसूस कर रहा है वहीं नीतिश कुमार की सेकुलर छवि का लाभ भी गठबंधन को है। नरेन्द्र मोदी की बिहार में प्रस्तावित सभा को लेकर भाजपा के बैकफुट में आने का लाभ भी नीतिश को मिलेगा। कुल मिलाकर नीतिश की पांचों ऊंगलियां घी में हैं। लालू दुविधा में हैं वह खुलकर इस फैसले का विरोध नहीं कर पा रहे हैं और न ही समर्थन करने की स्थिति में हैं जिसका घाटा उन्हें उठाना पड़ रहा है। जहां तक मुलायम की बात है वह दुविधामुक्त हैं और उन्होंने फैसले का विरोध करने का स्टैंड लिया है। निश्चित रूप से मुलायम लालू की तरह दो नावों की सवारी करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते, उनकी मंशा है कि उनके अपने मुस्लिम वोटबैंक के मजबूत दुर्ग में सेंध न लगे। इन सारे उदाहरणों में अगर गुजरे 20 सालों के अनुभवों से किसी पार्टी ने नहीं सीखा, वह समाजवादी पार्टी है। बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना गलत था और इस मुद्दे पर उदार हिंदुओं का एक बड़ा तबका उनसे सहमत था लेकिन अगर वह कोर्ट के ताजा फैसले को निराशाजनक बताते हैं तो इस उदार वोट बैंक से हाथ धो बैठेंगे जो ताजा फैसले को अदालत की आस्था पर मुहर बता रहा है। जहां तक मायावती की बात है उन्होंने फैसले के संबंध में संतुलित नजरिया रखा और सुलह-सफाई कराने की जिम्मेदारी केंद्र के मत्थे डाल दी। मायावती ने यूपी के अल्पसंख्यकों को भरोसा भी दिलाया कि सरकार उनके जान-माल की पूरी रक्षा करेगी। इस तरह उन्होंने फैसले के प्रतिकूल प्रतिक्रिया किये बगैर ही मुस्लिम भावनाओं को जीत लिया। फैसले के प्रति कांग्रेस ने भी संतुलित नजरिया रखा लेकिन इसके बावजूद फैसले से कांग्रेस के हाथ कुछ भी नहीं आया। ताजा फैसले के बाद यूपी में वोटों का ध्रुवीकरण एक बार फिर भाजपा और सपा के पक्ष में जायेगा और मायावती भी पर्याप्त हिस्सा पा लेंगी। वाम दलों ने हमेशा की तरह अपना स्टैंड रखा है। बंगाल में आम चुनाव होने वाले हैं और यहां एक बड़ा तबका अल्पसंख्यकों का है। साथ ही यह भी देखना होगा कि धर्म के पक्ष में वाम दृष्टिकोण रखने वाले मतदाता भी सीपीएम के पक्ष में होंगे। वैसे बिहार-बंगाल में होने चुनाव इस बात के एसिड टेस्ट होंगे कि कैसे
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment