अंग्रेजी में एक कहावत प्रचलित है कि इफ यू आर लूकिंग फार ए स्केप गोट देन हियर आई एम अर्थात अगर आप बलि के बकरे की तलाश में हैं तो मैं यहां मौजूद हूं। राजनीतिक मसले के रूप में इसका पहली बार प्रयोग अमेरिकी अभिनेत्री मर्लिन मुनरो ने तब किया था जब उनके प्रेसीडेंट कैनेडी के साथ संबंधों को बढ़चढ़कर बताया गया था। छत्तीसगढ़ की राजनीति में पप्पू फरिश्ता भी खुद को बलि का बकरा बनाये जाने के आरोप लगा रहे हैं पप्पू भले ही गलत बयानी कर रहे हों लेकिन सच्चाई यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस में सामी विरोधियों की कमी भी नहीं है। सामी से अधिकांश कांग्रेसी नेता खार खाये बैठे हुए थे लेकिन वह अपना असंतोष जाहिर कर पाते इससे पहले ही अधीर पप्पू फरिश्ता ने विरोध प्रदर्शन की सभी हदें पार करते हुए सामी पर कालिख फिंकवा दी।
दरअसल सामी की कार्यशैली ही ऐसी है जो विवादों को जन्म देती है। भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी जगत प्रकाश नड्डा की तुलना में नारायण सामी ज्यादा मुखर हैं वह पार्टी संबंधी मसलों पर बेबाक राय रखने के लिये जाने जाते हैं लेकिन उनका अंदाज-ए-बयां कुछ यूं होता है कि सामने वाला बगलें झांकने लगता है। सामी ने अपनी मुखर शैली से पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को नाराज कर दिया है। उनकी शैली लताडऩे की रही है और उन्होंने भटगांव में विधायकों की जमकर क्लास ली।
लेकिन सामी के प्रति नाराजगी केवल इसी वजह से नहीं है सामी के विरोधी कहते हैं कि सामी उनकी बात नहीं सुनते। पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने सामी को कई चिट्ठियां लिखी लेकिन सामी ने कोई जवाब नहीं दिया। वह तो यह भी कहते हैं कि जो चिट्ठी उन्होंने सोनिया को लिखी, वह भी सोनिया के पास नहीं पहुंची। स्थानीय नेता सामी पर यह आरोप लगाते हैं कि वह प्रभारी की हैसियत से अपना दायित्व पूरा नहीं कर रहे अर्थात पार्टी की जमीनी दिक्कतों से हाईकमान को वाकिफ नहीं कराते।
सामी के ऊपर यह भी आरोप लगता है कि अपने करीबी लोगों को आगे लाने के लिये वह वरिष्ठों की भी उपेक्षा कर देते हैं। टिकट वितरण के संबंध में आरोप लगाते हुए वह कहते हैं कि इसमें सामी ने अपने करीबी लोगों को टिकट दिलाई। यहां तक की कार्पोरेशन चुनावों में भी सामी ने अपने लोगों को उपकृत किया।
अगर प्रदेश प्रभारी के रूप में सामी के तीन साल के कार्यकाल पर नजर डालें तो उनके खाते में कोई उपलब्धि नहीं है। सामी पार्टी में चल रही गुटबाजी पर लगाम कसने में सफल नहीं हुए। वह संगठन चुनावों के दौरान भी पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं करा पाये। कालिख फेंकना अनुशासनहीनता की इंतहा थी लेकिन सामी के ही कार्यकाल में ऐसे कई वाकये आये जब अनुशासनहीनता की सीमाएं लांघी गई। सामी केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की बात कहते रह गये और पार्टी के भीतर अराजक तत्वों का हौसला बढ़ता गया।
सामी की सबसे बड़ी विफलता संगठन चुनावों में हुई गड़बडिय़ों के संबंध में रही। जब कांग्रेस की गुटीय राजनीति द्वारा निष्पक्ष चुनाव बाधित किया जा रहा था और अपने लोगों को पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया जा रहा था तब सामी ने इसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की। जाहिर है जब विधिक तरीके से पार्टी में आगे बढऩे का रास्ता अवरूद्ध हो जाता है तब अपनी बात रखने के लिये अराजक तरीके ही अपनाये जाते हैं।
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